कितना जरूरी था यह कदम
प्रधानमंत्री,सांसदो, राज्यपालों, एवं राष्ट्रपति की सैलरी पर 1 साल के लिए 30 प्रतिशत की कमीं। राष्ट्रपति अध्यादेश।
जहां एक ओर कोरोना वायरस कोविड-19 ने पूरे विश्व में महामारी का रूप ले लिया है दुनियाभर के देश इससे निपटने के लिए एक दूसरे को सहयोग कर रहे है। अगर भारत की बात करे तो यह कुछ हद तक नियंत्रण में है। इसके लिए सरकार की नीतियों की प्रसंशा के साथ ही सारे देशवासियों, जो कि इस विपत्ति की घड़ी में सरकार के साथ खडे है और सरकार पर विश्वास बनाए हुए है जो कि अभी एकमात्र रास्ता भी है, वह भी अपने आप में काबिले तारीफ है। प्रधानमंत्री की एक अपील ने पूरे देश ने जो गर्मजोशी के साथ सहयोग दिया है वह शायद ही कभी पहले हुआ हो। जहां तक आर्थिक मदद की बात है, लोगो ने जितना भी उनसे बन पड़ता है उतनी राशि पीएम रीलिफ फंड में जमा करवायी और करवा भी रहे है। इस सबमें एक बात जो कही न कही लोगो के मन में उठ रही थी क्या इसके बीच हमारे नेताओ का अपनी सांसद निधि मात्र से धन देना पर्याप्त है क्या उनको अपनी सैलरी या कुछ निजी साधनों से मदद नहीं करनी चाहिए थी। जैसा कि लोगो को इस बात की अच्छी तरह जानकारी हो चुकी है कि उनके लिए कराये जाने वाले विकास कार्य जो कि सांसद या फिर विधायक निधि से किये जाते है, पैसे उन्ही से किसी न किसी रूप में लिये जाते है। इसी कड़ी पर उठने वाले अन्य प्रश्नो को विराम लगाते हुए आज 6 अप्रैल, सोमवार को केन्द्र सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला लिया कि सभी कैबिनेट मंत्रियों और सांसदों की सैलरी में अगले एक साल तक के लिए 30 फीसदी की कटौती की जाएगी। जिसकी जानकारी कैबिनेट मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने देते हुए बताया कि केन्द्र सरकार इसको लेकर अध्यादेश जारी करेगी। यह वेतन कटौती पीएम और केंद्रीय मंत्रियों पर भी लागू होगी और राशि का उपयोग कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई में किया जाएगा। इसके साथ ही राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यों के राज्यपालों ने भी स्वेच्छा से सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में वेतन कटौती का फैसला किया है। जो कि केंद्र सरकार की एक अच्छी पहल मानी जा रही है।इससे पहले भी इस बात को लेकर बहस होती रहती थी कि क्यो हमेशा संसद सांसदो या फिर विधायको के वेतन बढ़ाने संबंधी प्रस्ताव लेकर आती है क्यो कभी भी ये प्रस्ताव इनमें कटौती संबंधी नही होता। केंद्र सरकार द्वारा लाया गया यह प्रस्ताव की सभी मीडिया चैनलो में तारीफ तो हो ही रही है साथ ही साथ विपक्ष का भी सहयोग, चाहे दिखावे के लिए ही क्यो न हो पर मिल जरूर रहा है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संसद अधिनियम, 1954 के सदस्यों के वेतन, भत्ते और पेंशन में संशोधन के अध्यादेश को मंजूरी दे दी। जिसका विवरण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 106 में किया गया है।
सैलरी में कटौती 1 अप्रैल, 2020 से एक साल के लिए लागू होगा जिसमें संसद सदस्यों को सैलरी मे 30 फीसदी तक की कटौती की जाएगी जिसे भारत के संचित निधि ↓में जमा किया जाएगा।
क्या है अनुच्छेद 106
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 106, संसद के किसी भी सदन के सदस्यों के वेतन और भत्ते 1954 इस तरह के वेतन और भत्ते प्राप्त करने के हकदार होंगे, जो समय-समय पर संसद द्वारा कानून द्वारा निर्धारित किए जा सकते हैं।क्या है अध्यादेश
भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को एक विशंेष शक्ति दी गयी है जिसे अनुच्छेद 123 से जाना जाता है जिसके तहत राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गयी है। अध्यादेश तब ही जारी किया जा सकता है जब कि संसद सत्र में नहीं हो। अध्यादेश ऐसे कानून हैं, जिन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर भारत के राष्ट्रपति (भारतीय संसद) द्वारा जारी किया जाता है, जिसका संसद के अधिनियम के समान प्रभाव होगा । इसका मकसद यह था कि जब संसद सत्र में न हो तथा भारत सरकार को तत्काल विधायी कार्रवाई करना हो तो वह राष्ट्रपति के द्वारा अध्यादेश जारी करवा सकती है। अध्यादेश को संसद से छह सप्ताह के अन्दर संसद से मंजूर मिलने पर यह कानून बन जाता है यदि ऐसा नहीं हुआ, या यदि दोनों सदनों द्वारा अस्वीकृत प्रस्तावों को पारित कर दिया जाता है, यह स्वतः निलंबित हो जाता हैं।वर्ष 1950-अभी तक कुल 698 अध्यादेश जारी किए जा चुके हैं।
अनुच्छेद 123
संविधान का अनुच्छेद 123 संसद के विश्रांतिकाल में अध्यादेश जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति है-- उस समय को छोड़कर जब संसद के दोनों सदन सत्र में हैं, यदि किसी समय राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जिनके कारण तुरंत कार्रवाई करना उसके लिए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा जो उसे उन परिस्थितियों में अपेक्षित प्रतीत हों।
- इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होगा जो संसद के अधिनियम का होता है, किन्तु प्रत्येक ऐसा अध्यादेश --
- (क) संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा और संसद के पुनः समवेत होने से छह सप्ताह की समाप्ति पर या यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले दोनों सदन उसके अननुमोदन का संकल्प पारित कर देते हैं तो, इनमें से दूसरे संकल्प के पारित होने पर प्रवर्तन में नहीं रहेगा। और
- (ख) राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय वापस लिया जा सकेगा।
स्पष्टीकरण--जहाँ संसद के सदन, भिन्न-भिन्न तारीखों को पुनः समवेत होने के लिए, आहूत किए जाते हैं वहाँ इस खंड के प्रयोजनों के लिए, छह सप्ताह की अवधि की गणना उन तारीखों में से पश्चात्वर्ती तारीख से की जाएगी।
- यदि और जहाँ तक इस अनुच्छेद के अधीन अध्यादेश कोई ऐसा उपबंध करता है जिसे अधिनियमित करने के लिए संसद इस संविधान के अधीन सक्षम नहीं है तो और वहाँ तक वह अध्यादेश शून्य होगा।
इसके साथ ही कैबिनेट ने भारत में कोविड 19 के प्रतिकूल प्रभाव के प्रबंधन के लिए अतिरिक्त धन जुटाने के लिए सांसदों के सांसद लोकल एरिया डेवलपमेंट फंड (MPLAD) को 2 साल के लिए निलंबित करने पर सहमति बनी। जो कि साल 2020-21 और 2021-22 के लिए लोकल एरिया डेवलपमेंट फंड को 2 साल के खत्म किया जाएगा। संसद के प्रत्येक सांसद को चाहे वह लोकसभा का हो या फिर राज्यसभा अपने क्षेत्र में विकास कार्य करवाने के लिए इस बजट का प्रावधान किया गया है जो कि हर साल 5 करोड़ रुपये प्रत्येक सांसद को मिलते हैं. इसे डच्स्।क् फंड कहा जाता है.
2 साल के लिए इस फंड के निलंबन से सरकार के पास 7900 करोड़ रुपये अतिरिक्त आएंगे। ये पैसा भारत सरकार के ब्वदेवसपकंजमक थ्नदक में जाएगा। इस रकम का इस्तेमाल कोरोना से लड़ने में किया जाएगा.
संचित निधि क्या है।
भारत के संविधान में मुख्यतः तीन प्रकार की निधियों का वर्णन किया गया है।भारत की संचित निधि अनुच्छेद 266(1)
संविधान के प्रधानमंत्री,सांसदो, राज्यपालों, एवं राष्ट्रपति की सैलरी पर 1 साल के लिए 30 प्रतिशत की कमीं। राष्ट्रपति अध्यादेश। के अनुसार, भारत की संचित निधि में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों से प्राप्त सभी राजस्व, भारत सरकार द्वारा लिए गए सभी ऋण और सरकार द्वारा प्राप्त सभी ऋणों की पुनर्भुगतान राशि शामिल हैं। संक्षेप में, इसमें सरकार की लगभग सभी प्रमुख कमाई होती है और भारत सरकार की ओर से सभी कानूनी तौर पर अधिकृत भुगतान भी इस निधि से चुकाए जाते हैं। इस निधि से किसी भी विनियोजन के लिए केंद्रीय संसद के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होती है।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 266 के तहत स्थापित है यह ऐसी निधि है जिस में समस्त एकत्र कर,राजस्व जमा, लिये गये ऋण जमा किये जाते है यह भारत की सर्वाधिक बडी निधि है जो कि संसद के अधीन रखी गयी है कोई भी धन इसमे बिना संसद की पूर्व स्वीकृति के निकाला/जमा या भारित नहीं किया जा सकता है अनु 266 प्रत्येक राज्य की समेकित निधि का वर्णन भी करता है
भारत की लोक निधि अनुच्छेद 266(2)
अनुच्छेद 266(2) के अनुसार, भारत की लोक निधि में भारत की संचित निधि में जमा किए जाने वाले धन के अलावा भारत सरकार की ओर से या उसके द्वारा प्राप्त सभी सार्वजनिक धन शामिल होता है। इनमें बचत बैंक जमा, भविष्य निधि जमा, न्यायिक जमा, विभागीय जमा आदि शामिल होते हैं। इस फंड से भुगतान संसदीय अनुमोदन के बिना किया जा सकता है। ऐसे भुगतान बैंकिंग लेनदेन के रूप में होते हैं क्योंकि वे सरकार द्वारा किए गए परिचालन खर्च से संबंधित होते हैं।भारत की आकस्मिकता निधि अनुच्छेद 267(1)
संविधान के अनुच्छेद 267(1) के अनुसार अप्रत्याशित व्यय को पूरा करने के लिए संसद भारत की आकस्मिकता निधि स्थापित कर सकता है। यह फंड भारत की आकस्मिकता निधि अधिनियम, 1950 नामक कानून द्वारा स्थापित किया गया था। यह निधि राष्ट्रपति के जिम्मे है और इस निधि से किसी विनियोजन के लिए संसद के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है। यह राष्ट्रपति की जगह पर वित्त सचिव द्वारा सांभाला जाता है।इसी तरह, राज्य की संचित निधि, राज्यों की आकस्मिक निधि और राज्य की लोक निधि की स्थापना राज्य स्तर पर की जाती है।
सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, बाजार से लिए गए ऋण और स्वीकृत ऋणों पर प्राप्त ब्याज संचित निधि (Consolidated Fund) में जमा होते हैं।
देश में कोरोना की मौजूदा स्थिति-
109 लोगों की मौत, संक्रमण के मामले 4067भारत में कोरोनावायरस के संक्रमण से 109 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि पूरे देश में इसके संक्रमण के कुल मामले 4067 हो चुके हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, रविवार की शाम के बाद अब तक देश में कोरोना संक्रमण के करीब 490 नये मामले सामने आए हैं जबकि इस दौरान इस घातक वायरस ने 26 लोगों की जान ले ली है। इन आंकड़ो में कुल मामलों के 30 फीसदी तब्लीगी जमात से जुड़े हैं।
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