क्या वास्तुकला भारत को विरासत में मिली है?
side view of both 64 Yogini Temple and Parliament House
विरासत के रूप में भारत मे कई ऐसे स्मारक और मंदिरें है जिन्हे देखकर लगता है कि शायद ये स्वयं भगवान द्वारा निर्मित हो। इसमें से कईयों के बारे में तो स्थानीय जनता मे भगवान द्वारा निर्मित होने जैसे किस्से भी शामिल है। भारत के कई मंदिर अपनी वास्तुकला और बनावट के लिए जाने जाते रहे है। प्राचीन काल में जो वास्तुकला का दर्शन हमारे देश के मंदिरो सार्वजनिक स्थानों आदि में देखने को मिलता है वह आज भी अपने आप में एक आश्चर्यचकित व देश को गर्भान्वित करने वाली कला है। आश्चर्यचकित इसलिए कि उस समय मे भी इस प्रकार की नक्काशी और तकनीक। आज के समय मे भव्य लगने वाला देश का संसद भवन अपनी वास्तुकला और बनावट के लिए भी विश्व भर में एक अलग स्थान रखता है और देश विदेश में इस 1920 ई0 में बने, भवन के नक्काशी की तारीफों का गुणगान होता रहता है एक ब्रिटिश आर्कटेक्चर एडवंट लुटिंयंट द्वारा डिजाईन किया गया यह भवन वाकइ तारीफ के काबिल तो है जिसे कि स्वतंत्रता के बाद भारत ने देश का सर्वोच्च सरकारी भवन, संसद भवन बनाने का विचार किया। मगर ये उस समय की बात है जब दुनिया में औद्यौगिक क्रांति के बाद आधुनिकता तकनीक और उच्च गुणवत्ता के उपकरण शामिल हो चुके थे। आज हम बात कर रहे है एक ऐसे मंदिर की या यूं कहे कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने जिस मंदिर को सबसे प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया है, और जिसका संसद मे जिक्र इस बात पर होता है कि संसद भवन को प्राकृतिक आपदाओ मुख्यतः भूकम्प से कोई खतरा नहीं है क्योंकि जब उसी की मूल प्रति यानी संसद भवन जिस मूल डिजाइन पर बना है, अभी तक इतने सालो तक सुरक्षित है। जिसे हम एक शान की तौर पर देखते है। वह मंदिर जिसके बारे में कहा जाता है कि इसके तर्ज पर ही आज का संसद भवन का डिजाईन है, जो कि आज से लगभग 700 वर्ष पूर्व बना था। यह मंदिर है मुरैना का चैसठ योगिनी मंदिर। वैसे तो भारत मे कई चैसठ योगिनी मंदिर है, परन्तु आज की स्थिति में इनमें से कुछ ही मंदिर ऐसे है जो अभी तक अच्छी दशा में बचे है।
चौंसठ योगिनी मंदिर मुरैना
Top View Of 64 Yogini Temple and Parliament House
हमारे देश में प्रमुख चार चैसठ योगिनी मंदिर जो अपनी विशेषता के लिए जाने जाते है, जिसमे से 2 वर्तमान उड़ीशा राज्य और 2 वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। परन्तु इन सब में आधुनिक मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में मितावली नामक गांव स्थित चैसठ योगिनी का एव विशेष महत्व है यह भारत के उन चैसठ योगिनी मंदिरों में से एक है जो अभी भी अच्छी दशा में बचे हैं। यह मंदिर वास्तुकला एवं स्थापत्य कला का उस समय का ही नही बल्कि आज तक का एक उत्कृष्ट नमूना है। मध्य प्रदेश के उत्तर में प्रसिद्ध ग्वालियर से लगभग 35-40 मी0 दूर मुरैना में चंबल के बीहड़ में प्रसिद्ध चैसठ योगिनी का यह मंदिर लगभग 35 मी0 ऊंची संगमरमर चट्टानी पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर को इकंतेश्वर महादेव भी कहा जाता है। इस मंदिर पर 101 खंभो को इस प्रकार बनाया गया है मानो ये इन्हीं खंभों के सहारे टिका हो, जो इसे और भी अधिक मजबूती प्रदान करते है किसी आधुनिक भूकंपयरोधी भवन की तरह जिसे बहुत से वैज्ञानिक अध्ययन के बाद बनाया गया हो। इसे, कच्छपघाट, (जो कि प्रतिहारों व चंदेलों के जागीदार थे।) सुबेदार देवपाल (कही-कही पर देवपाल का वर्णन प्रतिहार नरेश के रूप में भी किया गया है।) ने ज्योतिष, तंत्र और गणित की शिक्षा के केंद्र के रूप में 700 साल पहले 1323 ई0 में बनाया था। जो कि सूर्य के दृष्यिता के आधार पर ज्योतिष और गणित का अध्ययन करता था। इस मंदिर की बनावट एक वृत्तीय आधार पर निर्मित है जिसमें इसमें 64 कमरे हैं। तथा प्रत्येक में देवी की योगमुद्र में मूर्तियां है। मध्य भाग खुला हुआ है जो मण्डप के रूप में है। जिसमे एक विशाल शिव मंदिर बना है। मुख्य केंद्रीय मंदिर के भीतर स्लैब कवरिंग हैं यहा से बारिश के पानी का भूमिगत भंडारण छिद्र द्वारा होता हैं।
इसकी महत्ता और बनावट को देखते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इसे प्राचीन भारतीय ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया है। यानी ये मंदिर 1951 के अधिनियम के तहत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है।
मंदिर का डिजाइन इसे संरचनात्क रूप के साथ-साथ एक मजबूती भी प्रदान करता हैें पिछले कई शताब्दियों से इस मंदिर ने न जाने कितनी प्राकृतिक आपदाओं को सहा होगा, बावजूद इसके आज भी, इसके मजबूती और कठोरता के कोई फर्क नही पड़ा है। इस मंदिर में कई बड़े भूकंपीय झटके पड़े है क्योंकि यह क्षेत्र भूकंपीय संवेदन जोन 3 के अंर्तगत आता है। इस तथ्य का हवाला अभी सरकार द्वारा संसद मे उस वक्त दिया गया जब संसद पर भूकंपीय खतरे व अन्य प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए बचाव का मुद्दा चल रहा था। और तर्क दिया गया कि संसद भवन इस मंदिर की तरह ही मजूबत और भूकंपरोधी है। क्योंकि इसका डिजाइन चैसठ योगिनी मंदिर से लिया गया है। इससे एक बात तो साफ तौर पर स्पष्ट हो जाती है कि आज भी प्राचीन स्मारको और उसके वास्तुकला को कितना महत्व दिया जाता है और हम उनके अपनाना भी चाहते है शायद कर नही पा रहे है।
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