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Tuesday, April 7, 2020

Corona-19 Impact I चीन बन सकता है सुपरपाॅवर? Can china be the new superpower

कोरोना-19 । अमेरिका को पछाड़कर चीन बन सकता है सुपरपाॅवर?

कोरोना-19 से संबंधित क्या यह सच है कि चीन ने खुद ही मांग (आर्थिक संकट पैदा की) की स्थिति पैदा की और अब मांग की पूर्ति के लिए अपनी सप्लाई बढा रहा है। जो भी हो इस तरह के तथ्य जांच के विषय जरूर है हालांकि चीन का इतिहास भी कुछ ऐसा ही रहा है अगर यह सच है और चीन जैसा की इस लेख में लिखा जा रहा है, सुपरपाॅवर बनता है तो यह निश्चित ही एक चिंता का विषय जरूर होगा।
मेरा यह लेख कुछ विदेशी मीडिया द्वारा प्रकाशित किये गये हाल के आर्टिकलो के आधार पर है जिसमें अलग-अलग शीर्षक बनाकर इसी बात की ओर इशारा किया गया है कि हो सकता है चीन अमेरिका का स्थान ले लें।

  • China created demand and now fulfilling that demand.
  • China's Coronavirus Plan: Create a 'Silk Road' of Health Care Leading Towards World Dominance.
  • China Is sending Medical Experts and Suppler to help Italy fight Coronavirus
  • Spain buys Medical equipment worth 432 million euros from China.
  • Medical supplies from China arrive to help Iran.

आदि ये कुछ आर्टिकल थे मीडिया आउटलुक मे।

क्यो है अंदेशा कि चीन सुपरपाॅवर बनने की ओर-

विश्व स्वास्थ्य संगठन एंव संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने कोरोना-19 के प्रकोप को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे खतरनाक मानवीय विपत्ति बताया है। जब भी द्वितीय विश्वयुद्ध की बात आती है तो एक बात हमेशा जहन में आती है जिसे हम बचपन से स्कूली किताबों में पढ़ते आ रहे है वह है, 1945 की 6 अगस्त और 9 अगस्त की घटना, जिस दिन अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम गिराये थे, और विश्व युद्ध पर विराम लगाया था। यह उन घटनाओं में से एक है जिसने अमेरिका को सम्पूर्ण विश्व मे सामने एक सुपरपाॅवर के रूप मे दस्तक देने की शुरूआत की। इसी युद्ध के दौरान जहां विश्व के प्रमुख देश आपस मे लड रहे थे एक अमेरिका ही था जो न केवल इस युद्ध मे मात्र आशिंक रूप से जुड़ा था, बल्कि अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत भी कर रहा था। वह युद्ध में शामिल सभी देशों को सैन्य उपकरण निर्यात करके अपनी आर्थिक स्थिति को और मजबूत बना रहा था। तथा तमाम देशों को यकीन भी दिला रहा था कि उसके पास वह सामथ्र्य है जिससे वह उसके जुड सकते है। इस घटना का जिक्र आज के संदंर्भ मे इसलिए किया जा रहा है क्योंकि आज भी कुछ ऐसे ही हालात बने हुए है। अंतर सिर्फ इतना है कि विश्व युद्ध के स्थान पर कोरोना-19, अमेरिका का स्थान चीन है, तथा अमेरिका के सैन्य उपकरणो के स्थान पर चीन के मेडिकल किट। समानता है तो इस बात की कि दोनो देश अलग-अलग समय पर निर्यात से अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने मे लगे थे और लगे है। कुछ मीडिया आउटलुक में कहा जा रहा है, कि शायद इस महामारी से शक्ति का स्थानांतरण पश्चिम से पूर्व की ओर होने का समय आ गया है। मगर हैरानी की बात यह है कि इस समय जिस देश को अमेरिका के जगह लेने में प्रमुख के तौर पर देख जा रहा है, उसी देश से इस वायरस की शुरूआत हुई है। आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस से लड रही है वही दूसरी तरफ चीन ने शुरूआती संकट के बाद न केवल इस महामारी पर आशिंक रूप से काबू पाया है, बल्कि दुनिया भर को राहत व सुरक्षा उपकरण पहुचाने मे लगा हुआ है। वह पूरे विश्व को एक आर्थिक मदद करने या फिर अन्य मेडिकल सामाग्री पहुचा कर यह दिखाने का प्रयास कर रहा है कि उसके पास कितना सामथ्र्य है और साथ ही साथ अपनी आर्थिक स्थिति को गिरने से बचा भी रहा है। चीन के संदंर्भ में एक बात तो स्पष्ट है कि आज वह पूरी दुनिया के लिए मैन्यूफैक्चरिंग हब बनकर उभर रहा है। ऐसे में देखना होगा कि क्या सही मायने मे आने वाला समय मे चीन एक सुपरपाॅवर बनकर उभरने वाला है। मौजूदा हालात को देखकर तो यही लग रहा है, क्योकि चीन से शुरू हुए इस महामारी से जहां मौत का आंकडा लगभग 3-4 हजार के बीच है वही विकसित पश्चिमी देशों जहां कि मेडिकल सुविधा विश्व में सर्वक्षेष्ठ मानी जाती है हालात बहुत बुरे है। ईटली, अमेरिका, स्पेन एवं फ्रांस जैसे विकसित देशों में मौत का आंकड़ा 8-15 हजार पार पहुच गया है जबकि सिर्फ अमेरिका में संक्रमित लोगो की संख्या 6 लाख पार पहुच गयी है, और अनुमान है कि अमेरिका मे मौत आंकड़ा लगभग 80 हजार जबकि संक्रमित लोगो का आंकड़ा लगभग 13 लाख पार पहुचने का अनुमान लगाया है। इतना ही नही अमेरिकी आर्थिक सर्वे के अनुसार देश 2021 तक भयंकर आर्थिक मंदी की चपेट मे आने की संभावना है, जो कि 2008 से भी बड़ी खतरनाक साबित हो सकती है। इन सब से जाहिर है कि अमेरिका की आर्थिक स्थिति पर इसका बुरा असर पड़ने वाला है। ऐसे में दुनिया भर के ऐसे देश जो लगभर हर संकट से उबरने के लिए अमेरिका की ओर आस लगाए बैठे रहते थे वे आज चीन, भारत जैसे एशियाई देशो को सबसे विश्सनीय मान रहे है। हाल ही मे सर्बिया इटली एवं अन्य यूरोपीय देशों ने खुले तौर पर जाहिर किया कि कोरोना-19 से लडना है तो चीन की मदद बिना संभव नहीं होगा। उदाहरण के तौर पर सर्बिया को लिया जा सकता है जहा हाल ही में सर्बिया के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर वूसिक ने वैश्विक महामारी कोरोना वायरस पर एक प्रेस काफ्रेस की, जिसमें वे थोडी भावुक भी दिखे, उन्होने  इसमें स्पष्ट किया था कि सर्बिया को किन देशो का समर्थन लेना चाहिए या कौन देश सर्बिया को इस मुश्किल घडी से बाहर निकाल सकता है। और कौन नहीं। इसमें उन्होने किसी भी यूरोपीय देशों की तुलना में चीन को महत्व दिया, जहां से ही वायरस की उत्पत्ती हुई है। हालांकि उन्होंने कहा कि सर्बिया यूरोपीय संघ में शामिल होने चाहता जरूर है। 

सर्बिया के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर वूसिक

अब तक आप सभी समझ चुके होगे, कि अंतरराष्ट्रीय एकजुटता मे असर पडा है। खासकर यूरोपीय देशों की एकजुटता पर। यह कागज पर एक लिखी एक कहानी बन गयी है। आज मैंने एक विशेष लेटर, चीन के राष्ट्रपति शी जिंगपिंग को न केवल एक दोस्त के तौर पर बल्कि एक भाई के रूप में भी भेजा, जिसमें उनसे चिकित्कीय आपूर्ति करने के बारे में अनुरोध किया जो कि यूरोपीय संघ द्वारा देने से इनकार की गई।
कोरोना-19 महामारी के बीच चीन मे उत्पादन और व्यापार लगातार बढ़ाता जा रहा है जिसे इस आंकडे से और स्पष्ट समझा जा सकता है। कि चीन ने सिर्फ मार्च 2020 महीने में 386 करोड मास्क, 3.70 करोड़ प्रोटेक्टिंग क्लोथ, 16000 वेंटिलेटर तथा 28.4 लाख कोविड-19 टेस्टिंग किट आदि यूरोपीय व अन्य देशों मे निर्यात किया है।

क्या है सुपरपाॅवर-

सुपरपाॅवर वैसे तो कही आधिकारिक तौर पर इसका वर्णन तो नही किया गया है लेकिन इसका एक सीधा अर्थ यह निकालता है कि वह देश जो दुनिया में हो रहे किसी भी विवाद, आपदा आदि को सुलझाने में एक अहम रोल निभाता हो, जिसको दुनिया भर के अधिकंांश देशों को समर्थन प्राप्त हो और जो आर्थिक, सैन्य, राजनीतिक और तकनीकि रूप से सक्षम हो। 

कैसे बना अमेरिका दुनिया का सुपर पाॅवर-

एक समय था जब अमेरिका भी ब्रिटेन का उपनिवेश था, फिर ऐसा क्या हुआ कि आजादी के 244 वर्षों बाद अमेरिका आज दुनिया का एक सुपरपाॅवर बना गया।
अमेरिका का विश्व मानचित्र मे उभरकर आना और आज एक शक्तिशाली देश बनना, यहां तक की सुपरपाॅवर बनना एक सामान्य घटना नहीं है। सामान्य घटना नहीं है का मतलब कि एक समय दुनिया के लगभग आधे से ज्यादा देशों मे जहां यूरोंप के कुछ देशों ने उपनिवेशित किया हुआ था। और आज वही देश इसी अमेरिका के इर्द-गिर्द अपना व्यापार कर रहे है या सहयोगी बने हुए है। ब्रिटेन से आजाद होने के ढाई सौ साल बाद वही अमरिका ब्रिटेन के साथ ही सभी यूरोपीय देशों को पीछे छोडने हुए तेजी से विश्व मंच पर उभरकर सामने आया है। आजादी के बाद से ही अमेरिका की नीति हमेशा से एक विवाद का कारण रहा है। जिसे आज चीन से चुनौती मिल रही है। चीन एक प्रबल दावेदार के रूप में अमेरिका की नीतियों अपना भी रहा है या यूं कहे कि कुछ हद तक आगे भी बढ रहा है। 
14वीं और 15वीं सदी में पूरे यूरोप में भारत से व्यापार में दिलचस्पी थी जिससे अमेरिका जैसी भूमि का उदय हुआ। साल था, 1492 ई0 का जब क्रिस्टोफर कोलंबस भारत की खोज मे पश्चिम की ओर निकला तो उसे जो मुख्य भूमि नजर आयी उसे लगा कि उसने भारत को खोज लिया है जबकि यह भूमि अमेरिकी भूमि थी। इस प्रकार यह देश यूरोपीय देशों के सम्पर्क में तथा बाद में ब्रिटेन का उपनिवेश बन गया। ब्रिटेन ने उस समय इसका खूब आर्थिक शोषण किया, हालांकि यह भारत मे किये गये शोषण से तब भी कम ही था। इसी बीच अमेरिका में जाॅर्ज वाशिंगटन का उदय होता है और उनके सहयोग से 1773 ई0 में पहली बार 13 अमेरिकी बस्तियों की आजादी हुई हालांकि इसे मान्यता 4 जुलाई 1776 में मिली और इस आंदोलन के नेता जाॅर्ज वाशिंगटन अमेरिका के पहले राष्ट्रपति बने। आजादी के बाद अमेरिका की नीतियों में एक बड़ा बदलाव आया। उसने फ्रांस से लुइसियाना, रूस से अलास्का तथा अन्य क्षेत्र खरीदकर अपने क्षेत्र विस्तार को व्यापक बना दिया। आज अमेरिका एकमात्र देश है जिसका प्रभाव पूरी दुनिया में प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष रूप से है विवाद की स्थिति को वह अपनी आर्थिक व सैन्य नीतियों से सुलझाता है। आज हर किसी भी मुद्दे पर उसका प्रत्यक्ष हस्तक्षेप है चाहे वह हाल में ईरान हो या फिर सीरिया, उत्तर कोरिया, अफगानिस्तान या पाकिस्तान या फिर दक्षिण चीन सागर का मामला हो, उसका सीधा हस्तक्षेप रहता ही है। 
अमेरिकी आॅथर फरीद जकरिया की पुस्तक फ्राॅम वेल्थ टू पाॅवर, जिसमे जिक्र किया गया है कि अमेरिकी नेतृत्व एक दूरदर्शी सोच रखते है और वह हर योजनाओं को अगले 40-50 वर्षों के लिए ध्यान में रखकर तैयार करता है। अमेरिका की विस्तार वादी सोच व अंतराष्ट्रीय मजबूत के लिए ही उसने प्रेशिडेंशियल सिस्टम को अपनाया था। अमेरिका ने हर संकट की घडी में भी अपने को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाए रखा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण था प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध जब दुनिया के सबसे आर्थिक और सैन्य समर्थ देश मुख्यतः यूरोपीय देश जब युद्ध में व्यस्त थे ऐसे वक्त पर अमेरिका अपना व्यापार इन देशों को सप्लाई करने बढा रहा था जैसे अभी चीन कर रहा है। उसने इन युद्धों में तस्थता बनायी रखी या फिर आंशिक रूप से शामिल हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तो अमेरिका का चित्र और दायित्व दुनिया के सामने और भी स्पष्ट हो गया कि आने वाला समय अमेरिका का होने वाला है। इसके लिए सिर्फ एक ही चुनौती सामने था वह था यूएसएसआर (रूस), जो अपने आप को हर परिस्थिति में अमेरिका के बराबर या फिर श्रेष्ठ करने मे लगा था। इस समय दुनिया दो ताकतो के बीच बटी थी। अमेरिका ने अपना आर्थिक ढांचा और मजबूत करने के लिऐ ब्रेटन वुड्स समझौत के तहत समूचे विश्व की अर्थव्यवस्था को एक-दूसरे से जोडने काम किया। इसी बीच जब रूस शीत युद्ध के दौर में था, अमेरिका ने रूस के खिलाफ नाटो जो कि एक गैर युद्ध गठबंधन है स्थापित किया। और साम्यवादी शासन को रोकने के लिए दुनिया भर में सैन्य ताकतो का विस्तार किया तथा इराक, सऊदी अरब जैसेे कई देशों को अपने साथ जोड लिया।
देखते देखते अमेरिका विश्व मंच पर एक महानायक बन सामने आया। यह स्थिति 2010 तक मजबूत थी। धीरे-धीरे चीन इस क्षेत्र में अपनी पकड मजबूत करने मे है और सिल्क रोड, ओआरओबी, सीपीईसी, जैसी इसकी महत्वाकांशी योजनाएं इस ओर इशारा कर रहे है कि चीन किस हद तक अपना व्यापार मध्य एशिया सहित समूचे यूरोप मे बढ़ाना चाहता है। इसके एवजं में अमेरिका, जापान समेत ब्लू नेटवर्क के तहत एक प्रोजेक्ट पर काम तो कर रहा है अब देखना है कि यह किस प्रकार काम करता है। 


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