देवभूमि उत्तराखंड की महत्ता
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कहानी का अनुमानित समयावधि
यह कहानी है 17वी शताब्दी के समय की है, जब कुमाऊ मे चंद राजवंश, गढवाल में पंवार राजवंश और भारत में मुगल वंश का 6ठां बादशाह औरगजेब का शासन था। यानी यह कहानी आज से लगभग 350-400 साल पुरानी है। जैसा कि मुगल बादशाह औरंगजेब कट्टर इस्लामपंथी था उसने पूरे देश में मुस्लिम धर्म के प्रचार प्रसार पर जोर देना शुरू किया। ऐसे में उत्तर भारत के प्रदेश उत्तराखंड में एक देवता अवतरित होते है जिसे स्थानीय लोग न्याय के देवता के रूप मे पूजने लगे।
गंगनाथ जी का वंश व जन्म स्थान
कुमाऊ मे गंगनाथ देवता का महत्वपूर्ण स्थान है। मान्यता के अनुसार गंगनाथ जी काली नदी के पार डोटी राज्य, जो कि उन दिनो नेपाली राजाओं के अधीन एक गढ था और जिसकी राजधानी कांकुर थी के राजा भवैचंद के पुत्र थे। उनकी माता का नाम प्योंला रानी और बहन का नाम दूधकेलि था। कहीं-कहीं पर राजा उदयचन्द्र को गंगनाथ जी के पिता के रूप मे तो कही अन्य पर उनके चाचा के रूप मे विवरित किया है। यह गंगानाथ जी का वह परिचय है जिससे हमे उनके वंश और स्थान के बारे में पता चलता है। अब उनके आगे के जीवन के बारे में कई विवरण मिलते है। मै यहां उनमे से दो विवरण को नीचे प्रस्तुत कर रहा हू इस उम्मीद के साथ कि अगर कहानी में कुछ सुधारने की जरूरत हो तो आप लोगो से सुधार योग्य आंकडा पा सकूँ, क्योंकि गंगनाथ जी हमारे पूज्यनीय लोकदेवता है मै चाहता हू कि उनके बारे मे जो सही तथ्य हो वही लिखा जाये।
कहानी 1
इसके अनुसार गंगनाथ जी का जन्म जो कि डोटी राज्य के राजपरिवार में हुआ था, राजा उदयचंद्र उनके चाचा थे। राजा उदयचंद्र का कोई पुत्र नही था, और वह गंगानाथ जी के बचपन से उन्हे बहुत लाड-प्यार करते थे। अतः राजा ने अपने भतीजे गंगानाथ को राज्य का भावी उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। हालांकि राजा ने उसके बाद दूसरी शाही कर ली थी। इसके बावजूद भी वह चाहते थे कि राज्य का अगला राजा उनका भतीजा गंगनाथ ही हो। मगर रानी को यह बात खलती रहती थी, वह चाहती थी कि अगर उनका कोई पुत्र होता है तो वह ही राजा बने। अतः रानी ने गंगनाथ जी के बचपन से ही षडयत्र करना चालू कर दिया था, तथा उन्हे मारने के तरह-तरह के उपाय करने लगी। जैसे बालक गंगनाथ को विष पिलाना, नदी में फैक देना, जानवरो के बीच रखा जाना ताकि उनके पैरों से कुचल दिया जायें आदि। मगर इन सबके बावजूद गंगनाथ बच निकलते थे और वापस राज्य मे आ जाते थे। रानी ने उनको राजमहल मे मारने के लिए उनके कमरे मे जहरीले साप तक छोडे। जब ये सब उपाय काम नही किया तो रानी को बहुत गुस्सा आया। अब वह खुले तौर पर सैनिको की मदद से बालक को मारना चाहती थी। उस समय डोटी राज्य मे एक वीर सेनापति कुलवा डोटियाल, जिसकी वीरता के किस्से दूर-दूर तक फैले थे, था। रानी ने सेनापति को आदेश दिया था कि जब गंगनाथ राजमहल के बाहर हो तो उसका अंत कर देना। एक रोज जब गंगानाथ जंगल की ओर शिकार करने गये थे, तो रानी की आज्ञा से सेनापति ने उन पर हमला कर दिया। कहते है कि यह युद्ध 5 दिन व 5 रात चला था मगर कोई हारने को तैयार नही था। अंत मे 6ठें दिन कुलवा थकान के चलते हार गया। और वह गंगानाथ जी की वीरता के आगे नतमस्तक हो गया और आग्रह किया कि मै आज से आपका सेवक बनना चाहता हँू और साथ ही बताया कि क्यो वह गंगनाथ जी की जान लेने को आतुर है। गंगनाथ जी ने उदारता दिखाते हुए कहा कि सेनापति राज्य को इस वक्त तुम्हारी सेवा की ज्यादा जरूरत है। तुम्हे मेरे साथ नहीं बल्कि राजधानी में होना चाहिए। और रानी से कहना कि मैनें गंगनाथ को मार डाला। और मै दोबारा राज्य में नही आउगां तो उन्हे यकीन भी हो जायेगा। इस तरह सेनापति को दिये अपने वचन के कारण गंगनाथ राज्य छोडकर जंगलो में भटकते रहते है। शायद अपनी मंजिल ढूढने के लिए क्योंकि उनका जन्म तो कुछ और ही इतिहास लिखने को हुआ था।गंगनाथ जी का राजमहल छोडना
राजकुमार गंगनाथ की मुलाकात कई साल बाद भानुमति (भाना) से होती है, जो कि अपने पिता के साथ किसी राजा के पुत्र के इलाज के लिए जा रहे थी। किशनानंद जोशी अल्मोड़ा जिले के रंगोड़ पट्टी में दन्या नामक गांव के निवासी और पेशे से वैद्य थे। गंगनाथ उनको सुरक्षित चंद राज्य क्षेत्र में पहुचने में मदद करते है। किशनानंद जोशी की पुत्री भाना बहुत सुन्दर थी और गंगनाथ सुन्दर के साथ ही बहादुर भी थे। अतः दोनो एक दूसरे से प्यार करने लगते है।
उस समय कुमाऊ में चन्द वंश का राज था। कहा जाता है कि राजा के एक पुत्र को गंभीर बीमारी हो गयी थी। राजा और काल के बारे में स्पष्ट नही है क्योकि उस समय में इतिहास लेखन का अभाव, कहानिया सिर्फ जनश्रुतियौं या मौखिक रूप से ही अगली पीढी तक बढाये जाते थे। शायद यह राजा कोई चंद वंशीय राजा न होकर उनका कोई सामन्त हो, क्योकि अगर यह राजा चंद वंशीय राजा होता, तो जब बाद में गंगनाथ जी उनके सेनापति बने तो ऐसे महान सेनापति का वर्णन कही न कही उनके लेखों में जरूर मिलता। सारे राजवैद्य असफल हो गये थे। ऐसे में किशनानंद जोशी अपनी पुत्री भानुमति को लेकर जंगल के रास्ते राजमहल में पहुचते है और राजा की आज्ञा पाकर राजकुमार का ईलाज करते है लगभग ढाई महिने के ईलाज के बाद राजकुमार स्वस्थ हो जाता हैं। राजा वैद्य जोशी से अति प्रसन्न हो राजा है और अपने राजदरवार में अपना चहेता राजदरवारियों में शामिल कर लेता है। जोशी के माध्यम से ही राजा गंगनाथ की बहादुरी सुनते है और कुछ दिनों बाद ही उनसे मुलाकात भी करते है। क्योंकि गंगनाथ बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे, अतः राजा भी उनसे प्रभावित हुए बिना नही रह पाये। इसी बीच किशनानंद को पता चलता है कि भाना और गंगनाथ एक दूसरे से प्यार करने लगे है। चूंकि किशनानंद उच्च वर्ग के बाह्मण थे। अतः उनको उन दोनो का प्यार रास नही आ रहा था। उन दिनों उच्च जाति के बाह्मण किसी निम्न जाति में विवाह को अपमान समझते थे तथा इसे अपने धर्म के विपरीत मानते थे। इसकी रक्षा के लिए अपने या अपनों के प्राण की आहुति भी कोई बडी परीक्षा नही होती थी। अतः उन्होने इस वावत अपनी पुत्री भाना को बहुत समझाया परन्तु वह मानने को तैयार नही थी। इस पर किशनानंद के मन में गंगनाथ के प्रति घृणा और नफरत की भावना और भी बढ गयी थी। वह पहले चाह रहे थे कि किसी तरह अपमानित करके उन्हें भाना की जिंदगी से दूर करवा दे।
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वीरता प्रतियोगिता जीनता
कुछ दिन बीतने के बाद इस वर्ष राज्य में वीरों की प्रतियोगिता होनी थी जो नियमित अन्तराल में होती रहती थी। जिसमें राज्य के कई वीर भाग लेते है, जो तीरंदाजी, तलवार बाजी, मल्य युद्ध और शेर से कुश्ति जैसे कई पडावों से गुजरते थे। यह प्रतियोगिता प्राण धातक भी हो सकती थी। क्योकि जो इस प्रतियोगिता को जीतता था उसे राजा की सेना मे उच्च पद मिलता था। जैसे राजा पहले से ही गंगनाथ की वीरता के किस्सों से काफी प्रभावित था। अतः वह चाहता था कि गंगनाथ भी उस प्रतियोगिता मंे प्रतिभाग करें। इसके लिए राजा ने जोशी और गंगनाथ को बुलाया और गंगनाथ जी को इसमें प्रतिभाग करने के लिए पूछा, वह सोच ही रहे थे, जोशी जी बोल पडे कि गंगनाथ जैसे वीर के लिए यह एक शान की बात है वह अवश्य इसमें भाग लेगे। इसके पीछे जोशी जी चाहते थे कि गंगनाथ इस युद्ध में मारे जायगे और उनकी समस्या दूर हो जायेगी।
अब प्रतियोगिता शुरू हुई राजा गगनाथ जी की बहादुरी तब कि कई बार देख भी चुके थे। अतः उन्होने निर्णय लिया कि जो भी इस प्रतियोगिता को जीतकर आयेगा गंगानाथ उसी से लडेगे। हालांकि भाना का मन अंदर से बहुत दुखी था। उसने कई बार गंगनाथ जी को इस प्रतियोगिता से अलग होने और कई और भागकर शादी करने की बात भी कही थी। मगर गंगनाथ जी नही माने उन्होने कहा यह मेरे शान के खिलाफ है कि मै बिना युद्ध किये भाग जाऊ।
प्रतियोगिता में राजा को सेनापति जीतकर आया अब उसे गंगनाथ जी से लडना था। कथाओं मे कहा गया कि दोनो समान शक्ति सम्पन्न थे। सभी कौशलता में युद्ध बराबर का रहा। अतः में शेर से दोनो को लडना था। जिसमे राजा का सेनापति जो कि इस युद्ध में पारंगत था, कुछ की समय मे हार गया। जबकि गंगनाथ जी ने शेर को मुख के दोनो जबड़ों को अपने दोनो हाथो से पकड़ के शेर के मुह को बीच से चीर दिया। सभी दर्शक गंगनाथ की ताकत को देख के चकित रह गये। और इतने शक्तिशाली पुरुष को देख के आश्चर्यचकित भी हुए। इतना होते ही शेर का शरीर शिथल होने लगा। फिर गंगनाथ जी ने शेर
के शिर पर एक शक्तिशाली प्रहार से शेर के जीवन का अंत कर दिया। शेर कि मृत घोषित होते ही पूरी यूद्ध भूमी गंगनाथ जी के जय कारे से गूंजने लगी। सभी गंगनाथ जी की वीरता की चर्चा करने लगे। गंगनाथ जी के जीतने के बाद उन्हे राज्य का सेना पति बन गये।
कहानी का अंतिम भाग
दूसरी ओर किशनानंद जोशी को गंगनाथ जी की यह विजय चुभ रही थी, अब तो वह और भी शक्तिशाली बन गये थे। ऐसे मे जोशी जी ने कूटनीति और छलनीति का सहारा लिया। एक ओर अपनी बेटी को भरोशा दिलाया कि उसकी शादी गंगनाथ से ही होगी दूसरी ओर कुछ विश्वासपात्र सैनिकों को साथ लेकर गंगनाथ जी को मारने की कूयोजना बनायी (सैनिको को पहले इस बात का यकीन दिलाया कि गंगनाथ दुश्मनों से मिला हुआ है)। इससे पहले वह गंगनाथ जी से मिले और कहा कि वह उनकी और भाना कि शादी को राजी हो गये। और उन्हे अकेला बुलाकर सैनिकों की सहायता से उनका वध करके शक को कुए मे फैक दिया।
गंगनाथ जी की हत्या कर जब जोशी घर पहुंचे, तो उन्होंने देखा की भाना ने अपने सारे बाल फैलाये हुए है। और वो कमरे में गोल-गोल चक्कर लगा रही है। और भाना ने अपने पिता को देखते ही वह रूक गयी और उसे घूरने लगी। फिर भारी आवाज में कहती है -मार आये तुम मुझे वहा। भाना इतना कहते ही घर से बाहर की ओर भागती है। भाना का ये रुप जोशी जी ने पहली बार देखा था। उन्हे कुछ समय नही आ रहा था। वह सिर्फ उसके पीछे भाग रहे थे। भाना भागते-भागते उसी कुएँ के पास जाकर रूकती है, जहां गंगनाथ जी को मारकर उनके शव को डाला जाता है। भाना कहती है। तूने मुझे मार कर भाना से अलग किया और अब मैं भाना को अपने साथ लिए जा रहा हू। इतना कह के भाना कुएं में कूद गयी। यह देख के जोशी जी बेहोश हो जाते है। और उनके होश मै आने पे वो पगलों की तरह व्यवहार करने लगते है। पूरे राज्य में यह बात आग की तरह फैल जाती है। लोग घरों से निकलने में भयभीत होने लगते है। कहते है। कि गंगनाथ हर किसी के सपने में आने लगे थे। राजा भी अपनी राज्य के लिए बहुत चिंतित थे। जब उन्हे पूरी कहानी का पता चला तो पंडितो व ज्योतिषो से इसके समाधान के लिए बुलाया। पंडितो ने उपाय बताया कि चूंकि गंगनाथ जी की मृत्यु धोखे से हुई है। अतः उनकी आत्मा की शांति के लिए किशनानंद जोशी व राज्य के अन्य लोगो उनका मंदिर स्थापित करके उनकी पूजा करनी होगी। तब से लोग वीर गंगनाथ जी की पूजा करने लगे। गंगनाथ जी को न्याय का देवता भी कहा जाता है।
जब वो मृत्यु के बाद भाना के शरीर में आते है तो उसी रूप को भनभामणी नाम से पुकारा जाता है। और ये भी कहा जाता है। कि मृत््यु के बाद सबसे पहले स्त्री के शरीर में प्रवेश करने के वजह से आज भी वे अधिकतर स्त्री के शरीर में ही अवपरित होते है।
कहानी 2-
इसके अनुसार गंगनाथ जी नेपाल मे डोटी राज्य के राजा उदयचंद्र के पुत्र थे। वे सूर्यवंशी थे। जब बालक गंगनाथ का जन्म हुआ तो राजा ने राजज्योतिषी को बुलाया और बालक की कुण्डली दिखाई। ज्योतिषी ने कुण्डली को देखते ही भविष्यवाणी की कि यह बालक सभी सद्गुणो से युक्त है, युगो-युगो तक पूजा जायेगा मगर अल्पआयु है, सिर्फ 12 वर्ष की आयु में संसार त्याग देगा। इसके अलावा ज्योतिषी ने यह भी बताया कि गंगनाथ की शादी भाना नाम के बाह्मण कन्या से होगा। ज्योतिषी की भविष्यवाणी से राजा चिंतित होने लगे और साथ ही भविष्यवाणी को गलत सिद्ध करने मे लग गये। जैसे ही गंगनाथ बडे हुए राजा उदयचंद्र ने उनकी शादी किसी पडोसी राज्य की राजकुमारी से करवा दी और उसका नाम भाना बामणी (बाह्मण कन्या) रख दिया। कहा जाता है कि राजा ने राजकुमार के 12 वर्ष के होने तक 7 बार विवाह करवा दिया था। लेकिन भाग्य मे जो लिखा था उसे न बदल पाये। जैसे ही गंगनाथ 11 वर्ष के हुए तो उन्हे भाना नाम की ब्राह्मण कन्या से सच में प्रेम हो गया था। वह उनके सपनो में आने लगी थी। वह सपने में ही भाना के बारे मे सब जान चुके थे। अतः अब उन्होंने उससे मिलने का प्रण लिया। इसके लिए उन्होने साधू का वेश रखा और अपने घोडे में बैठकर अल्मोडा के दन्या गांव की ओर प्रस्थान किया। लोगो से रास्ता पूछते-पूछते आखिरकार वह भाना के गांव पहुंच ही गये थे। भाना उर्फ भानुमति वही लडकी थी, जिसका जिक्र उपर कहानी में भी किया गया है वैद्य किशनानंद जोशी की बेटी। कहा जाता है जैसे ही गंगनाथ भाना के गांव पहुंचे, मानों यह बात पहले से ही भाना को पता हो वह उन्ही के इतंजार में बैठी हो। दोनो के बीच प्रेम बढता गया। और आखिरकार जोशी को पता चल गया। उन्होने अपने कुल की मान-मर्यादा के खातिर इस रिस्ते को स्वीकार नही किया और षडयत्र करके गंगनाथ जी की हत्या करवा दी। तत्पश्चात् गंगनाथ जी उनके ही परिवार के लोगो में अवतरित हो गये और सारी घटनाए सुनाने लगे। आखिरकार जोशी को मंदिर बनाकर उनकी स्थापना करनी पडी।
कहानी कोई भी हो मगर यह सच है कि गंगनाथ डोटी राज्य के सूर्यवशी राजकुमार थे, जिनकी साजिश द्वारा हत्या करवा दी थी। वह तब से आज व आने वाले कई वर्षो तक पूजे जायेगे। आज पूरे उत्तराखंड में उनका प्रभुत्व है। देश-विदेश में उनके चमत्कार सुनाये जाते है। वैसे तो गंगनाथ देवता के मंदिर पूरे पहाडी क्षेत्र में लेकिन मुख्यता वह कुमाऊ क्षेत्र में ज्यादा पूजनीय है, यहा इनको न्याय के देवता के रूप मे पूजा जाता है। आज भी गांव में लोग जागर में असीम श्रद्धा रखते है, जागर या जागरण देवताओ की स्तूती है जिसमे उनकी प्रशस्ति में लोकगीत गाकर देवताओ को अवतरित किया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया लोकगीत एंव उनमादयुक्त नृत्य पर आधारित होता है।
न्याय देवता श्री गंगनाथ जी
आज समाज में कई प्रकार की न्याय व्यवस्था है, जो लोगो से सीधे पहुच में, लोग न्याय पाने के लिए किसी भी माध्यम को चुन लेता है और न्याय मिले या न मिले इंतजार करता रहता है। मगर मध्य काल में जब अन्यायपूर्ण गोरखा शासन या फिर कष्टदायक अंग्रेजो का राज हो, पीडित अपनी फरीयाद लेकर उन्हें याद करता या पूजता था। और उनकी समस्या का समाधान हो जाता था।
श्री गंगनाथ देवता जी की कृपा हम सब पर बनी रहें।
Jai Gangnath. Please write on Golu Devta
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