Wednesday, May 6, 2020

Himalaya Origin and Himalaya's Top Peaks and Important ranges I Tethys Sea I हिमालय पर्वत की उत्पत्ति व हिमालय के आश्चर्य। टेथिस सागर की जगह कैसे हिमालय पर्वत खडा हो गया।

हिमालय पर्वत की उत्पत्ति व हिमालय के आश्चर्य। टेथिस सागर की जगह कैसे हिमालय पर्वत खडा हो गया।



आज के इस लेख मे मैने हिमालय का संक्षिप्त मगर गहन विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। हिमालय पर्वत भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित एक महान पर्वत की श्रृख्लां है जो पूर्व मे नाम्चा बरूआ पर्वत से पश्चिम में नंगा पर्वत तक लगभग 2400 वर्ग  किमी तक वृत्त के एक आर्क या चाप के रूप में फैला  है, जिसका कि आर्क या चाप वाला हिस्सा या बाह्य भाग उत्तर भारत के विशाल मैदान की ओर तथा चाप का केद्र वाला हिस्सा तिब्बत की ओर है अर्थात यह पूर्व से पश्चिम की ओर पहले दक्षिण पश्चिम की ओर तथा बाद मे अचानक उत्तर पश्चिम की ओर विस्तारित है। हिमालय पर्वत श्रृख्ला पूर्व से पश्चिम विस्तार मे दुनिया की सबसे लम्बी पर्वत श्रृख्ला है। यह पर्वत श्रृख्ला भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया व तिब्बत से पृथ्क करता है। जो कि पांच देशों चीन, भूटान, नेपाल, भारत और पाकिस्तान मे फैला है, कुछ जगहों पर अफगानिस्तान का हिन्दु कुश पर्वत व म्यांमार का खबाको राजी पर्वत को भी हिमालय का भाग बताया गया है जो कि एक अगल ही पर्वत है अतः हिमालय पर्वत श्रृख्ला का विस्तार सिर्फ 5 देशों में है म्यांमार व अफगानिस्तान मे नही। अधिकांश लोगो शायद लगता होगा कि यह सबसे प्राचीन पर्वत है मगर यह भू-वैज्ञानिक और संरचनात्मक रूप से यह नवीन वलित पर्वत श्रंृख्ला है, पर्वत श्रृंखला मुख्यतः पांच प्रकार की होती है। जैस वलित पर्वत या फोर्ड माउंटेन, ब्लाॅक माउंटेन, अवशिष्ट माउंटेन आदि जिसे एक नए आर्टिकल मे समझेंगे। इसमे वलित पर्वत का अर्थ के भूगार्भिग हलचल के कारण पृथ्वी के आतंरिक शक्तियों द्वारा सहत की चट्टानों या आकृतियों में दबाव पडने से एक नयी पर्वतीय संरचना का बनना। आंतरिक शक्तियो के कारणों मे मुख्यतः पृथ्वी के प्लेटो का आपस में टकराव है। प्लेट समझने के लिए सबसे पहले संक्षिप्त में  जानते है पृथ्वी की संरचना- पृथ्वी के मुख्यतः तीन भाग होते है सबसे अंदर कोर, बीच मे मेंटर व सबसे बाहरी भाग क्रस्ट। प्लेटो का संबंध पृथ्वी के क्रस्ट भाग से है अर्थात पृथ्वी का बाह्य भाग, क्रस्ट कई विशाल खंडो से मिलकर बना है इन्ही विशाल खंडो को ही टेक्टोनिक प्लेट कहते है। मुख्यतः पृथ्वी का क्रस्ट 16 बडे प्लेटों व 100 से अधिक कई छोटे टेक्टोनिक प्लेटो से बना है। हिमालय के संदंर्भ मे इन 16 बडे टेक्टोनिक प्लेटो में से सिर्फ दो का ही रोल है। एक है यूरेशियन प्लेट व दूसरा है भारतीय प्लेट, जो आज आॅस्ट्रेलियन प्लेट से मिलकर भारतीय-आॅस्ट्रेलियन प्लेट बनाती है। हिमालय का निर्माण सेनोजोइक एरा के इयोसीन से प्लायोसीन काल तक भारतीय प्लेट का यूरेशियन प्लेट मे अभिसरण (एक प्लेट का दूसरी प्लेट के नीचे चले जाने से, या आसान भाषा में कहें तो, टकराने से) होने के कारण हुआ था। इसका प्रथम उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व। 

उत्तराखंड के प्रमुख 15 पर्वत चोटियां


यह हिमालय का आसान भाषा में एक इतिहास है इसे थोडी और बारीकी से समझने से पहले मै आप लोगो को हिमालय से जुडे कुछ तथ्य पेश कर रहा हूँ, शायद अधिकतर लोग इन तथ्यो का जानते हो मगर फिर भी एक बार जरूर पढे़। 

  • हिमालय पर्वत में 7,200 मीटर (23,600 फीट) से अधिक ऊंचाई पर 80 पर्वत चोटी और 8,000 मीटर से अधिक की ऊंचाई 10 चोटिया शामिल हैं।
  • हिमालय और विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को भी कई नामों से जाना जाता है। नेपाल में इसे सIगरमाथा (आकाश या स्वर्ग का भाल), संस्कृत में देवगिरी और तिब्बती में चोमोलुंगमा (पर्वतों की रानी) कहते हैं।
  • हिमालय पर्वतीय प्रदेश में 54.7 मिलियन लोग रहते हैं। जो विश्व की कुल जनसंख्या का 1 प्रतिशत है।
  • हिमालय के निर्माण में प्रथम उत्थान अर्थात महान हिमालय का उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व। काल निर्धारण के अनुसार इयोसीन व ओलियोसीन काल मे महान हिमालय का मायोसीन काल जो आज से लगभग 250 लाख पहले था, लघु हिमालय का व शिवालिक का उत्थान आज से लगभग 110 लाख साल पहले प्लायोसीन काल मे हुआ था।
  • 72 किलोमीटर लंबा  सियाचिन हिमनद विश्व का दूसरा सबसे लंबा हिमनद है।
  • हिमालय श्रेणी में लगभग 12000 वर्ग किमी मे फैले, 15000 ग्लेशियरों में लगभग 12000 क्यूबिक किलोमीटर या 3000 घन मील ताजा पानी है जो कि विश्व के सभी ग्लेशियरों में उपलब्ध ताजा पानी 2.4 करोड क्यूबिक किलोमीटर का 0.05 प्रतिशत है।
  • हिमालय पर्वत श्रेणी द्वारा कवर कुल क्षेत्रफल लगभग 612,021 वर्ग किमी है, जो धरती पर कुल भूमि क्षेत्र का 0.4 प्रतिशत है।
  • हिमालय की माउंट एवरेस्ट समुद्र स्तर से ऊपर की दुनिया में सबसे ऊंची चोटी है। यह 8,848 मीटर ऊँची है। इस चोटी का नाम उस समय के एक ब्रिटिश सर्वेयर जार्ज एवरेस्ट, जिन्होने वर्ष 1830 -1843 तक हिमालय के कई ऊची चोटियों का सर्वेक्षण किया था।
  • माउंट एवरेस्ट पर चढाई के लिए 11000 डाॅलर (8.25 लाख रू0) की एंट्री फीस देनी पडती है जबकि पहले यह फीस 25000 डाॅलर थी। जिसे नेपाल सरकार ने 2015 मे कम करके 11000 डाॅलर किया था। 1974 से आज तक सिर्फ दो बार ही वर्ष 1974 व 2015 मे कोई भी पर्वतारोही एवरेस्ट मे नही चढा।
  • माउंट एवरेस्ट हर वर्ष 2 सेमी की दर से अभी तक उठने मे है। इस पर्वत तक पहुचने में 18 रास्ते है। 52 टन कूडे के साथ ही यह पर्वत विश्व का सबसे प्रदूषित पर्वत है।


परीक्षा विशेष- हिमालय पर्वत श्रृख्ला के मुख्य रूप से चार समानांतर श्रेणियां- शिवालिक, मध्य हिमालय, महान हिमालय व टाªंस हिमालय है। इसके अंतर्गत हिमालय की उत्तर से दक्षिण श्रेणियां काराकोरम, लद्दाख, कैलाश, जाॅस्कर, पीरपंजाल, धौलाधर, महाभारत व शिवालिक आदि श्रेणियाँ शामिल है।

पूर्व से पश्चिम प्रमुख पर्वत शिखर
नमचा बरवा (पूर्वी),  कंचनजंगा, मकालू,  माउंट एवरेस्ट, गौरी शंकर,  धौलागिरी,  अन्नपूर्णा, नंदा देवी, गॉडविन ऑस्टिन (के2), नंगा पर्वत (पश्चिमी)


क्या है भारतीय उपमहाद्वीप


उपमहाद्वीप, महाद्वीप के भीतर ही एक बडा क्षेत्र होता है, अपेक्षाकृत एक अलग सा भूभाग होता है। यह भाग अपने महाद्वीप के बाकी भाग से भौगोलिक या राजनीतिक स्वरूप से भिन्न होता है। भारतीय उपमहाद्वीप भूगर्भिक रूप में भारतीय प्लेट द्वारा एशिया के बाकी देशो से पृथ्क है, जिसमे मुख्यतः हिन्दमहासागर व भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव और श्रीलंका देश शामिल है।

हिन्दु पौराणिक कथाओं में हिमालय की मान्यता 



हिन्दु पौराणिक कथाओं के अनुसार हिमालय का नाम इस क्षेत्र के राजा हिमवान या पर्वतेश्वर के नाम से पडा, जिनकी रानी मैनावती थी, माता पार्वती को इन्ही हिमवान की पुत्री के रूप में वर्णित किया जाता है। कथाओं के अनुसार माता सती, जो कि राजा दक्ष की पुत्री थी के आत्मदाह कर लिया था। इसी वक्त तारक नामक दैत्य ने भगवान ब्रह्मा जी से वर प्राप्त कर लिया था कि उनका वध सिर्फ भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही हो सकता है चूकि भगवान शिव पत्नीहीन व पुत्रहीन थे। अतः दैत्य को लगा वह अमर है, उसका वध करने वाला कोई नही है, जिसका फायदा उठाकर उसने त्रैलोक्य पर अधिकार जमा लिया था, और पूरा संसार संसार शक्तिहीन हो चुका था। देवतागण देवी आदिशक्ति की शरण में सहायता हेतु गये। उधर दूसरी ओर राजा हिमवान व रानी मैनावती की भी कोई कन्या नही थी, और उन्होने संतान प्राप्ति के लिए आदिशक्ति की प्रार्थना की। अतः आदिशक्ति माता सती ने दक्ष की पुत्री के बाद राजा हिमवान व रानी मैनावती की पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिसका नाम उन्होने पार्वती, जिसका अर्थ है पर्वतों की रानी, रखा गया। सप्तऋषियों के अनुरोध पर देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह कर लिया। साथ ही भगवान शिव को भी स्मरण हुआ कि देवी पार्वती ही देवी सती है। बाद मे दैत्य का वध भगवान गणेश के हाथों होता है। माता पार्वती के अन्य नाम जैसे गौरी या महागौरी, गिरिजा, शैलपुत्री है। कुछ विद्वान मानते हैं कि मां पार्वती को ही मां उमा कहा जाता है। शुम्भ, निशुम्भ, महिषासुर आदि जैसे कई असुरों का वध माता पार्वती ने ही किया था। और इनकों की नवदुर्गा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया।

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हिमालय का निर्माण से पूर्व।


पृथ्वी पर बनी प्रत्येक स्थलाकृति अपने आप में एक रोचक कहानी बयां करती है, इन स्थलाकृतियों के संबंध में वर्षों से कई धारणाये या परिकल्पना यानी तर्क के साथ किसी बात की कल्पना करना, दी जा रही है। सर्वप्रथम आस्ट्रिया के भूवैज्ञानिक एडवर्ड सूएस ने वर्ष 1861 में पृथ्वी की उत्पत्ति के आरंभिक काल मे इसका अंगारालैंड व गोन्डवानालैड नाम दो सुपरकांटिनेंट, जो दो महा भू-खंड थे, मे विभाजित होने की परिकल्पना दी। इन दोनो महाद्वीपों के बीच में टेथिस नाम एक सागर था, जो कि काफी लंबा व उथला सागर था, जिस पर दोनो भूखंडो से लाखों सालों से अपदरित पदार्थ जैसे, मिट्टी, कंकड आदि का जमाव होता रहा। पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन, पृथ्वी की आंतरिक हलचक व अन्य भौगोलिक कारणो से लाखों वर्षों में पृथ्वी के अंदर प्लेटो का विस्थापन होता रहा एंव वह एक दूसरे की ओर खिसकते रहे। दो विरोधी दिशाओ में पड़ने वाले दबाव के कारण सागर में जमी मिट्टी आदि की परतो में वलय (मोंड) पड़ने लगे । धीरे-धीरे वलन के कारण गाद ने पहले पानी के सतह के ऊपर आने से द्वीपों की एक श्रृंखला के रूप लिया, और यह क्रिया निरंतर चलती रही और लाखों करोडो वर्षों बाद टेथिस सागर में जमा ये गाद ने एक विशाल पर्वत श्रेणियो का रूप ले लिया और आज का हिमालय पर्वत श्रृख्ला पर्वत बन गया। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस पर्वत श्रृख्ला में अभी भी निरंतर उत्थान जारी है और यह माना जा रहा है कि इस पर्वत की संभावित ऊचाई इसकी मौजूदा ऊचाई से तीन गुना तक पहुच सकती है।




हिमालय की उत्पत्ति की प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धान्त


आस्ट्रिया के भूगर्भशास्त्री एडवर्ड सूएस द्वारा टेथिस सागर की कल्पना के बाद हिमालय की उत्पत्ति की परिकल्पना को कोबर से विस्तार से समझाया जिसे कोबर के भूसन्नति सिद्धांत कहते है, इसके अलावा अमेरिकी भू-वैज्ञानिक हैरी हेस का प्लेट टेक्टोनिक्स या प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत भी इस विषय पर सर्वमान्य व्याख्या करता है। इन दोनो सिद्धांतो के अनुसार पृथ्वी के अंदर भारतीय प्लेट और इस पर स्थित भारतीय भूखण्ड गोंडवानालैण्ड नामक विशाल महाद्वीप का हिस्सा था, जो कि अफ्रीका महाद्वीप से जुडा हुआ था। ऊपरी इयोसीन काल, लगभग 840 लाख वर्ष पूर्व में पृथ्वी की प्लेटों पर भारी बदलाव देखने को मिला और भारतीय प्लेट अफ्रीकन प्लेट या गोंडवानालैंड से विभाजित होने लगी और केरिओलिस बल के कारण यह अपने मूल स्थान से उत्तर पूर्व की ओर एंटीक्लोकवाइज घुमने लगी। लगभग 6000 किमी खिसकने के बाद उत्तर में यूरेशियाई प्लेट जिस पर चीन व उसका उत्तरी भाग है व भारतीय प्लेट जो कि दक्षिण पश्चिम से खिसककर आ रही थी के बवाद से टेथिस सागर पर दवाब पडा और उसका गाद उपर उठने लगा, और भारतीय प्लेट अब दूसरे महाद्वीपीय प्लेट यूरेशियन प्लेट से सीधे टकराव में आ गयी, और साथ ही भारतीय प्लेट का उत्तरी पूर्वी हिस्सा 45 अंश के आसपास घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में घूम कर आज के भारत की स्थिति में आ गया। इस पूरी घटना को लगभग 200 लाख वर्ष का समय लगा, अर्थात हिमालय का केन्द्रीय भाग के निर्माण में 200 लाख का समय लगा। इसी प्रकार हिमालय की चारों प्रमुख श्रेणियों की रचना अलग-अलग काल में हुई जिसका क्रम उत्तर से दक्षिण की ओर है। आज भी भारतीय प्लेट में लगातार विस्थापन जारी है वैज्ञानिको का मानना है कि यह प्लेट प्रतिवर्ष 5 सेमी उत्तर एंव उत्तर पूर्व की ओर विस्थापित हो रही है, जिसे यूरेशियन प्लेट द्वारा रोका जाता है, क्योंकि यूरेशियन प्लेट प्रतिवर्ष लगभग 2 सेमी से उत्तर की ओर बढ रहा है। जिसके कारण प्लेटों के बीच में ऊर्जा का संग्रहण भी हो रहा है। जो कि समय समय पर प्लेटो के किनारे से संग्रहित ऊर्जा भूकम्प के रूप में पृथ्वी की सतह पर दस्तक देता रहता है।

हिमालय का विभाजन

हिमालय पर्वत को दिशा के आधार पर मुख्यतः दो प्रकार से विभाजित किया जाता है।
1. उत्तर से दक्षिण विभाजन
2. पूर्व से पश्चिम विभाजन, जिसे प्रादेशिक विभाजन भी कहते है।

उत्तर से दक्षिण विभाजन

भारत के संदर्भ में हिमालय उत्तर से दक्षिण क्रमशः टाªंस हिमालय, महान या वृहत हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक, इन चार पर्वत श्रेणियाँ में विभाजित है। जो कि एक दूसरे से घाटियों या भ्रंशो के द्वारा पृथ्क होती है।




टाªंस हिमालय

टाªंस हिमालय का लगभग सभी भाग भारत के उत्तर अर्थात तिब्बत में पडता है। इस भाग की ऊचाई औसतन अन्य भाग से कम है। यह हिमालय भारत को तिब्बत से जोडने के लिए कई पास या दर्रे प्रदान करता है जिनसे होकर व्यापारी व तीर्थ यात्री यात्रा करते हैं। काराकोरम, लद्दाख , जाॅस्कर व कैलाश आदि पर्वत श्रेणिया इसी हिमालय के भाग है। भारत का पवित्र तीर्थ स्थल कैलाशमानसरोवर भी इसी हिमालय मे पडता है। विश्व की सर्वाधिक तीव्र ढाल वाली चोटी राकापोशी लद्दाख श्रेणी मे व विश्व का दूसरा बडा ग्लेशियर सियाचिन 72 किमी काराकोरम श्रेणी में है। इस हिमालय से कई नदियो जैसे सिन्धु, सतलज, बह्मपुत्र व सांग्पो आदि का उत्पत्ति होती है। 

महान हिमालय या वृहत हिमालय 

टाªंस हिमालय के दक्षिण में महान या वृहत हिमालय है जिस ग्रेट हिमालय, हिमाद्रि आदि नामों से जाना जाता है, क्योकि इस भाग में बडे-बडे ग्लेशियर है। यह हिमालय की सर्वाधिक सतत और सबसे ऊँची श्रेणी है, जिसकी औसत ऊँचाई लगभग 6000 मी. है। हिमालय की सर्वाधिक ऊँची चोटियाँ जैसे माउंट एवरेस्ट, कंचनजंघा आदि इसी पर्वत श्रेणी में पायी जाती हैं। इस कोर भाग ग्रेनाइट का बना हुआ है हिमालय की उत्पत्ति के समय सबसे पहले हिमालय की इस श्रेणी का निर्माण हुआ था। अधिकांशतः हिमालय का तात्पर्य इसी श्रेणी से होता है यह श्रेणी पूर्व में अरूणाचल प्रदेश से पश्चिम में जम्मू तक फैला है।

मध्य या लघु हिमालय

यह वृहत हिमालय के दक्षिण में स्थित श्रेणी है, जिसे ‘हिमाचल’ के नाम से भी जाना जाता है। इसकी औसत ऊँचाई 3700 मी. से  4500 मी. तक पायी जाती है और औसत चैड़ाई लगभग 50 किमी. है। यह हिमालय पर्वतीय पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है जैसे, कश्मीर घाटी, कांगड़ा घाटी और कुल्लू घाटी आदि लघु हिमालय में ही स्थित है। पीरपंजाल, धौलाधर और महाभारत उप श्रेणियाँ इस हिमालय के प्रमुख भाग है, इन सबमें पीरपंजाल सबसे लंबी और महत्वपूर्ण श्रेणी है।

शिवालिक

लघु या मध्य हिमालय की दक्षिण में स्थित शिवालिक श्रेणी हिमालय की सबसे बाहरी श्रेणी है। जिसकी औसत ऊँचाई 900 मी. से लेकर 1500 मी. तथा औसत चैडाई 10- 50 मीटर तक ही है तथा इसका विस्तार लगभग मध्य व पश्चिमी हिमालय में ही पाया जाता है, जो कि नेपाल से हिमाचल प्रदेश तक ही विस्तारित है। शिवालिक व लघु हिमालय के मध्य कई घाटिया पायी जाती है जिनहे दून कहा जाता हैं जैसे देहारादून, कोटलीदून, पाटलीदून आदि। इस श्रेणी में पर्वतपादों के पास जलोढ़ पंख या जलोढ़ शंकु पाये जाते हैं।

हिमालय का प्रादेशिक विभाजन या पूर्व से पश्चिम विभाजन



हिमालय पर्वत श्रेणी कई नदी घाटियों द्वारा बीच बीच में कटी है। जिनमे से होकर नदीया प्रवाहित होती है, जो प्रादेशिक हिमालय की सीमा का निर्धारण भी करती है। इसी आधार पर ब्रिटिश सेना के अधिकारी सर सिडनी बुराड ने हिमालय को चार प्रादेशिक क्षेत्रों में विभाजन किया था, जो इस प्रकार है।

असम हिमालय- तीस्ता और दिहांग नदी(बह्मपुत्र का अरूणाचल प्रदेश मे नाम) के मध्य लगभग 720 किमी में विस्तृत हिमालय।

नेपाल हिमालय- काली और तीस्ता नदी के मध्य 800 किमी विस्तृत हिमालय। सबसे बडा प्रादेशिक हिमालय।

कुमायूँ हिमालय- सतलज और काली नदी के मध्य लगभग 320 किमी विस्तृत हिमालय। सबसे छोटा प्रादेशिक हिमालय।

पंजाब या कश्मीर हिमालय- सिंधु और सतलज नदी के मध्य लगभग 560 किमी विस्तृत हिमालय। इसे कई कई जगहों पुनः दो उप भागो कश्मीर व हिमाचल हिमालय में भी बाटा गया है। कश्मीर में करेवा इसी हिमालय मे देखे जाते है जो कि पूर्व में टेथिस सागर की पुष्टि करते है।

भारत के लिए हिमालय पर्वत या हिमालय क्षेत्र का महत्व


उत्तराखंड या भारत में हिमालय पर्वत को सिर्फ एक पर्वत के रूप में न मानकर कई स्थानों पर इसकी पूजा तक की जाती है। अगर इसके महत्व की बात करें तो यह भारत को चारों ओर से लाभांवित करता है, इस पर्वत ने जितना प्रभावित भारत भूमि को किया है उतना दुनिया के किसी पर्वत श्रेणी का किसी अन्य भूमि को नही किया है। इसका विशाल शरीर जलवायु प्रभाव के कारण भारत को एक कृषि प्रधान देश बनाता है, तो इसका पवित्र स्थान का धार्मिक महत्ता के कारण पर्यटन में एक विशेष महत्व रखता है। इसी प्रकार कुछ विशेंष पाॅइटों वाइज इसके महत्व को वर्णित किया हैं।

जलवायु प्रभाव व सुरक्षा 


हिमालय भारत की जलवायु प्रमुखता से प्रभावित करता है। एक ओर तो यह ग्रीष्मकालीन मानसून जो कि अरब सागर व बंगाल की खाडी से उठता है, को रोककर भारतीय क्षेत्र में बारिश करवाता है तो वही दूसरी ओर साइबेरिया व मध्य एशिया से आने वाले ठंडे महाद्वीपीय वायु का भारत में प्रवेश रोकता भी है, अगर ये ठंडी हवाये रोकी नही जाती तो यह उत्तर भारत को भी एक ठंडे रेगिस्तान में बदल देता। साथ ही यह हिमालय जेट स्ट्रीम को दो शाखाओं में विभाजित करने पश्चिमी विक्षोप के कारण उत्तर भारत मे शीतकालीन बारिश करवाता हैं। आज के मौजूदा हालात मे इसकी स्थिति एक रक्षा आवरण के रूप चीनी हमलों से भी भारत की रक्षा भी करता है, जो कि इसने वर्ष 1962 में किया था।

नदिया, सिंचाई, बिजली उत्पादन, उपजाऊ मिट्टी एंव औषधीय के रूप मे


हिमालय भारत मे सदाबहार नदियां का उद्गम स्थल है ये नदिया वर्षभर प्रवाहित होती है। जो भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ये नदियां अपने साथ बहाकर लायी गयी उपजाऊ मिट्टी को उत्तर भारत के विशाल मैदान में फैलाकर यह क्षेत्र को और भी उपजाऊ बनाती है। एक अनुमान के अनुसार हिमालय से निकलने वाली नदियां प्रतिदिन लगभग 50 लाख टन गाद अपने साथ बहाकर ले जाती है। जिसमे गंगा नदी तंत्र द्वारा 20 टन, सिंधु तंत्र द्वारा 10 टन व ब्रह्मपुत्र तंत्र द्वारा 20 टन है। इन नदियों पर डैम बनाकर बिजली उत्पादन, सिचांई व पीने के पानी की व्यवस्था की जाती है। इसके साथ ही हिमालय की स्थिति से इन क्षेत्र में गर्म जल के कई गीजर भी मौजूद है, जिनसे भी बिजली का उत्पादन होता है। हिमालय से निकलने वाली नदियों का देश के बिजली उत्पादन में 35 प्रतिशत थर्मल व लगभग 55 प्रतिशत हाइड्रोइलेक्ट्रिक मे हिस्सा है। जो कि हिमालय के आर्थिक महत्व को वयां करता है। इसके अलावा हिमालय के जंगल ईंधन लकड़ी और वन आधारित उद्योगों के लिए कच्चे माल की एक बड़ी विविधता प्रदान करते हैं। जो कई औषधीय पौधे की जन्म स्थली रही है। औषधीय पौधे की ये प्रजातिया सिर्फ इसी क्षेत्र में पाये जाते हैं। साथ ही यहां के सदाबहार बुग्याल, कई चरागाह घास से भरे होते हैं, जो पशुचारको के लिए एक विस्तृत क्षेत्र प्रदान करते है।

तीर्थयात्रा एवं पर्यटन


यह क्षेत्र प्राकृतिक खूबसूरती केन्द्र है पर्यटकों मे रुचि लेने वाले लोग हर साल करोडों की संख्या में इस क्षेत्र में भ्रमण करते है। इसके साथ ही हिमालय को पवित्र तीर्थस्थानों से भरा हुए क्षेत्र है। जिसे देवताओं का निवास स्थान कहा गया है। हिमालय के सभी तीर्थस्थलों में भी प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में तीर्थयात्री पवित्र मंदिरों में अपनी श्रद्धा अर्पित करने के लिए कठिन इलाके से होकर जाते हैं। इसमें कैलास, अमरनाथ, बद्रीनाथ, केदारनाथ, विष्णु देवी, ज्वालाजी, गंगोत्री, यमुनोत्री, आदि तीर्थ स्थान शामिल हैं।

खनिज

हिमालयी क्षेत्र में कई मूल्यवान खनिज होते हैं। तृतीयक क्रम की ये चट्टानों में खनिज तेल की विशाल भंडारण की संभावनाएँ हैं। एंथ्रेनाइट जो कि सबसे उत्तम किस्म का कोयला होता है, भी कश्मीर क्षेत्र में पाया जाता है। तांबा, सीसा, जस्ता, निकल, कोबाल्ट, सुरमा, टंगस्टन, सोना, चांदी, चूना पत्थर, अर्ध-कीमती और कीमती पत्थर, जिप्सम और मैग्नेसाइट हिमालय में 100 से अधिक इलाकों में पाए जाते हैं।

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