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Monday, May 4, 2020

Bhagavad Geeta used in Courts for oath I History of it I अदालतों में पवित्र ग्रन्थों के नाम पर शपथ दिलवाने का इतिहास


Geeta ki kasam in court अदालतों में पवित्र ग्रन्थों के नाम पर शपथ दिलवाने का इतिहास 



हमारी अदालतों में गवाह को पवित्र ग्रंथ गीता पर हाथ रखकर कसम क्यों दिलायी जाती है? या सप्ताह के सात दिनों का नाम रविवार-शनिवार क्यों और किसने रखे? दोस्तो ऐसे कई सवाल है हमारे दिमाग मे घुमते रहते है, जो हमारी जिज्ञाशा बढाते है, लेकिन हम यह सोचकर कि इसका कारण जानने के पीछे समय बर्बाद होगी या अनपयुक्त श्रोत के कारण हम इनका जवाब ढूढने की कोशिश नहीं करते है। शायद कही न कही इससे हमारी जिज्ञाशा भी वही दब कर रह जाती है। माना कि ये सब सवाल इतने महत्वपूर्ण नहीं हो मगर इसके जवाब भी हमे शायद ही आते होगे।

हम मे से अधिकांश लोगो को कोर्ट की कार्रवाही देखी नही होगी। मगर फिर भी कोर्ट का नाम सुनते ही हमारे मन मे फिल्मो के वे सीन घुमने लगते है जिसमे गवाह को गवाही दिलाने से पहले गीता पर हाथ रखकर कसम दिलायी जाती है, कि वह जो कहेगा सच कहेगा, सच के सिवा कुछ नही कहेगा.......। क्या यह प्रथा सच में थी कि गवाह को गीता की शपथ दिलायी जाती थी, या तो इसकी शुरूआत कब से हुई और क्या अभी भी यह प्रथा मौजूद है। आज हम इस लेख मे इन सभी सवालो का जवाब जानेगे मगर इससे पहले जान लेते है, श्रीमद्भगवद गीता के बारे मे कुछ रोचक तथ्य-


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श्रीमद्भगवद्गीता से जुड़े कुछ रोचक तथ्य


श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दु धर्म की एक पवित्र ग्रन्थ है। जैसा कि हम जानते है कि भगवत गीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा युद्ध और जीवन के अर्थ को समझाने के लिए अर्जुन को दिए गए उपदेश का एक संग्रह है। इसके अलावा भी इस पवित्र ग्रन्थ से कई रोचक तथ्य जुडे है।-


  • भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का पाठ एकादशी तिथि को, रविवार के दिन एवं 45 मिनट तक सुनाया था।


  • श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत में छन्दों का सबसे महत्वपूर्ण संग्रह है, महाभारत में 18 पर्व संकलित है भगवतगीता इसमे से 12वे पर्व अर्थात शांति-पर्व का एक हिस्सा है। श्रीमद्भगवद्गीता में भी 18 अध्याय हैं, जो तीन हिस्सों 6-6 अध्याय में विभक्त है। इस ग्रन्थ में कुल मिलाकर 700 छंदों का संग्रह है।


  • भगवद्गीता का यह नाम भगवान व गीत से दिया है अर्थात भगवान द्वारा गाया गया गीत या भगवान का गीत। जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों का संग्रह है फिर भी इसे गीत कहा जाता हैं। इसका कारण है कि यह भगवान श्रीकृष्ण द्वारा यह उपदेश ऐसे स्केल पर बोला गया जिसे अनुष्टुप कहा जाता है, जो कि 32 अक्षरों का एक प्रसिद्ध छंद है यह मूलतः चार चार पक्तियों में विभाजित होता हैं और प्रत्येक चरण में 8 वर्ण होते है। इसके साथ ही रामायण और महाभारत के अधिकांश श्लोक अनुष्टुप छंद में ही लिखे गये है।


  • गीता का पावन ज्ञान अर्जुन से पहले भगवान सूर्यदेव को मिला था।


  • श्रीमद्भगवद्गीता में एक अनेखा संजोग है जो कि है नंबर 18 को लेकर। नम्बर अठारह (18) का संस्कृत में अर्थ “जया” होता है जिसका अर्थ है-बलिदान। इस नंबर का इस ग्रन्थ मे संयोगपूर्वक या योजनाबद्ध प्रयोग कई बार हुआ है। जैसे 18 त्यौहार, गीता में 18 अध्याय अक्षौहिणी अथार्त 18 जरासंध का 18 बार आक्रमण तथा महाभारत में 18 अक्षौहिणी सेना जिसमें पांडवों के पास 11 कौरवों के पास 7 अक्षौहिणी। इस प्रकार 18 अंक का महाभारत में बहुत महत्व है।


  • वर्ष 1785 में पहली बार श्रीमदभगवद् गीता का अंग्रेजी अनुवाद चाल्र्स विल्किंस ने ब्रिटेन की राजधानी लंदन में किया था। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी अपने जीवन के अंतिम वर्षो में भगवद गीता का पाठ किया था। गीता का पाठ करने के उपरान्त आइंस्टीन ने कहा कि मुझे इस बात का दुख है कि मैने अपने जीवन में पहले गीता का पाठ क्यों नही किया, मुझे पहले ही गीता पाठ कर लेना चाहिए था। 


  • भगवद् गीता मूलतः शास्त्रीय संस्कृत में लिखी गयी है परन्तु इसे अब तक 175 भाषाओं में अनुवादित किया जा चुका है।


  • श्रीकृष्ण भगवान से गीता का सीधा उपदेश अर्जुन के अलावा तीन अन्य लोगो ने सुना। वह थे- 
  1. संजय -जिसे वरदान स्वरूप दिव्य शक्ति मिली थी।
  2. हनुमान जी-वह स्वंय अर्जुन के रथ पर थे। 
  3. बर्बरीक -बर्बरीक घटोत्कच का पुत्र था, इसकी मृत्यु होने के वावजूद इसे एक पहाड़ी से महाभारत का युद्ध देखने का वरदान प्राप्त था।

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अदालतों में कसम या शपथ दिलाने का इतिहास


शपथ लेने या दिलाने का इतिहास तो प्राचीनकाल से चला आ रहा था। उस समय अधिकांशतः इसका ही एक प्रतिरूप जिसे प्रतिज्ञा कहते है का कई पौराणिक ग्रन्थों एंव कहानियों में वर्णन मिलता है। शपथ एवं प्रतिज्ञा में अंतर इस बात का है कि, शपथ भगवान के नाम पर ली जाती है जबकि प्रतिज्ञा भगवान के बिना किसी भी संदर्भ के वादे के लिए भी ली जाती है। हमें महाभारत कालीन भीष्म की प्रतिज्ञा याद है। जैसे-जैसे समय बढता गया और शासको मे जनता के प्रति विश्वास घटता गया और उन्होने प्रतिज्ञा के रूप को शपथ में बदलकर या कहें कि भगवान के नाम से डराकर जनता से सच की उम्मीद की जाने लगी।

भारत मे शपथ का प्रमाण जैसा कि प्राचीन काल से रहा दिखता है मगर किसी धार्मिक ग्रन्थों को साक्षी मानकर शपथ लेने का पहला प्रमाण दिल्ली सल्तनत काल के दौरान मिलता है, मगर इस प्रथा की शुरूआत मुगल काल से मानी जाती है। जैसा कि उस काल में लोग अधिक धार्मिक होते थे तथा धार्मिक मूल्यों को बहुत अधिक महत्व देते थे इसलिए मुगल शासकों ने भारतीयों की धार्मिक आस्था का उपयोग लोगों से सच उगलवाने में किया ताकि समाज में अपराध कम हों और अपराधी को पकड़कर दण्डित किया जा सके। हालाँकि इस समय तक भी यह एक दरबारी प्रथा थी इसके लिए कोई कानून नहीं था, लेकिन बाद में अंग्रेजों ने इसे जरूरी मानते हुए इसे एक लिखित कानून की शक्ल दी। इसके लिए उन्होंनें इंडियन शपथ अधिनियम 1873 पास किया, जो कि 14 खंडो में वर्णित था तथा देश के सभी अदालतों में लागू कर दिया गया था। जो कि भारत के स्वतंत्र होने के बाद 10 साल तक कुछ शाही समय की अदालतो जैसे बाॅम्बे हाईकोर्ट, मद्रास हाईकोर्ट आदि में चलता रहा। हिन्दू के अलावा मुस्लिम व नॉन हिन्दू और नॉन मुस्लिम्स के लिए उनकी पवित्र धार्मिक ग्रन्थों पर हाथ रखकर कसम खाने की प्रथा चालू बनी रही थी।

स्वतंत्र भारत का पहला लाॅ कमीशन वर्ष 1955 मोतिलाल चमनलाल सीतलवाड, जो कि भारत के पहले अटाॅर्नी जनरल भी थे की अध्यक्षता में गठित की गयी थी। वर्ष 1968 में के. वी. के. सुन्दरम् की अध्यक्षता में स्वतंत्र भारत का पाॅचवा लाॅ कमीशन गठित किया गया। जिसके तहत वर्ष 1969 में भारतीय शपथ अधिनियम 1873 में सुधार हेतु न्यायालयों में कैदियों की उपस्थिति से संबंधित कानून के तहत कमीशन ने अपनी 28वी रिपोर्ट कोर्ट को सौपी। तथा देश में भारतीय शपथ अधिनियम, 1873 में सुधार का सुझाव दिया गया और इसके स्थान पर भारतीय शपथ अधिनियम, 1969 पास किया गया था। इस प्रकार पूरे देश में एक समान शपथ कानून लागू कर दिया गया है.

इस कानून के पास होने से भारत की अदालतों में शपथ लेने की प्रथा के स्वरुप में बदलाव किया गया है अब ऐसे गवाह, जो 12 साल से कम उम्र का है तो उसे किसी प्रकार की शपथ नहीं दिलाने का प्रावधान था, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि बच्चे स्वयं भगवान के रूप होते हैं। इसके साथ ही अब शपथ धार्मिक ग्रन्थों के स्थान पर सिर्फ एक सर्वशक्तिमान भगवान के नाम पर दिलाई जाती है.

अर्थात आज के सदर्भ में तब से शपथ को सेक्युलर बना दिया गया है। अर्थात सभी धर्मों के लोगो के लिए उनके पवित्र ग्रन्थों पर हाथ रखकर शपथ रखने के वजाय ईश्वर के नाम पर शपथ का प्रावधान किया गया। 

अब सभी के लिए इस प्रकार की शपथ है


मैं ईश्वर के नाम पर कसम खाता हूं  ईमानदारी से पुष्टि करता हूं कि जो मैं कहूंगा वह सत्य, संपूर्ण सत्य और सत्य के अलावा कुछ भी नहीं कहूँगा--




शपथ का महत्व व शपथ लेने का कर्तव्य-


अदालत से झूठ बोलने पर भी सजा का प्रावधान है क्योंकि झूठे तथ्यों या गवाहों से वह कोर्ट को गुमराह कर सकता है इसलिए कोर्ट गवाही में शपथ को प्रावधान है जहा शपथ को एक बाध्यता के तौर पर लिया जाता है जब तक किसी व्यक्ति द्वारा शपथ नहीं ली जाती तब तक वह सच बोलने के लिए किसी प्रकार से बाध्य है यह आवश्यका नहीं है लेकिन जैसे ही व्यक्ति ने शपथ या कसम लेता है अब वह सच बोलने के लिए बाध्य हो जाता है। इसीलिए गवाह कोर्ट में जब जज के सामने कसम खाता है (“मैं जो कहूँगा, सच कहूँगा और सच के सिवा कुछ नहीं कहूँगा) तो वह कानूनन सच बोलने के लिए बाध्य होता है. अगर अदालत ने उसका झूठ पकड़ लिया तो सजा पक्की है।


दरअसल किसी भी मामले में गवाह दो तरीके से अपने कथन को दर्ज करा सकता है।

शपथ लेकर या शपथ पत्र पर लिखकर 

अगर कोई व्यक्ति कसम खाने के बाद झूठ बोलता है तो इंडियन पैनल कोड (आईपीसी) के सेक्शन 193 के तहत यह कानून अपराध है और झूठ बोलने वाले को 7 साल कारावास की सजा के साथ ही जुर्माने तक का प्रावधान है। 

इसे एक उदाहरण के तौर पर भी देखा जा सकता है कि जब भी कचहरी से कोई व्यक्ति एफिडेविट (जिसमे लिखकर व्यक्ति द्वारा शपथ ली जाती है) बनवाता हैं उसके नाम वाले काॅलम मे वकील उसके नाम को वेरीफाई नही करता है कि दर्ज नाम सही है या  नहीं ऐसा इसलिए होता है कि जैसे उपर बताया गया है यह भी एक प्रकार का उस व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत शपथ ही है जिसमे दर्ज कोई गलत विवरण के लिए भी वह व्यक्ति ही खुद जिम्मेदार माना जाता है एंव सजा को हकदार भी वही व्यक्ति होता है। 

भारतीय कानून में गीता, कुरान या किसी भी धार्मिक ग्रन्थ का कोई उल्लेख नहीं है। आज इस प्रथा को कुछ गिने चुने धारावाहिको एंव फिल्मों में ही दिखाया जाता है असल मे इस प्रथा का कई साल पहले ही सुधार हो गया 

वर्तमान समय में भारत की अदालतों में गीता या कुरान जैसी कोई भी धार्मिक ग्रन्थ नही मिलती है हां एक पवित्र जिसे भी हम ग्रन्थ कह सकते है वह जरूर होती है जिसका नाम है भारतीय संविधान। 



दोस्तो आशा करता हूँ कि इस लेख में इस विषय से जुडे सवालों का जवाब आप लोगो को मिला होगा। आगे भी कुछ ऐसे ही रोचक तथ्यों को जानने के लिए पड़ते रहे मेरे इस ब्लाॅग को।



धन्यवाद, नमस्कार



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