उत्तराखंड की अमर प्रेम कहानी राजूला-मालूशाही कत्यूरी
राजूला-मालूशाही कहानी से जुडे मुख्य राजवंश एवं परिवार
शौका सरदार-
शौका आज भी पिथोरागढ बागेश्वर व चमोली के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करते है जिन्हे कई स्थानीय नामों से जाना जाता है। परन्तु पन्द्रहवी शताब्दी में दारमा की सुरम्य घाटी गोरीगंगा व पंचाचूली की उपत्यका में बसे गाँव दांतू में एक सम्पन्न व्यापारी सुनपति शौक हुआ करता था, जो उस छोटे से क्षेत्र का सरदार होता था। उनकी धर्मपत्नी गंगौली या गांगुली एक ममतामयी धर्मपरायण महिला थी। इस शौका परिवार से ही कहानी की शुरूआत होती है। शौका सरदार सुनपति और पत्नी की लगभग 12 वर्ष के शादी के बाद भी संतान प्राप्ती नही हुई थी। बागेश्वर बागनाथ धाम के रूप में तब से ही बहुत मान्यता थी। कहा जाता था कि निःसंतान मकर संक्रांति के दिन यहा स्नान व पूजा अर्चना करके संतान प्राप्ती हेतु की गयी कामना पूर्ण होती थी। दोनो शौका सरदार व पत्नी संताना प्राप्ती हेतु बागेश्वर को पहुचते है जहा से कहानी की शुरूआत होती है।कत्यूरी राजवंश-
वैसे तो कत्यूरी राजवंश एक राजवंश के तौर से कई सौ सालों से उत्तराखंड व आसपास के क्षेत्र में सुशासन करता हुआ आ रहा था मगर मध्य काल मे आधुनिक गढवाल में पंवार राजवंश की तथा कुमाऊ को चन्द राजवंश की ठोस शासन शुरू हो चुका था जिनमें क्षेत्र विस्तार हेतु कई युद्ध भी होते रहते थे, ऐसे में कईयों में मन मे ये शंका है कि जब कुमाऊ और गढवाल ने सत्ता का हस्तांतरण हो चुका था ऐसे मे कत्यूरि 15वी शताब्दी मे इस क्षेत्र मेे कहा से आ गये। इसका कारण है कि यद्यपि चन्दो और पंवारो ने इस क्षेत्र की सत्ता प्राप्त कर ली थी फिर भी कुछ सीमित क्षेत्रों में कत्यूरियो का शासन था जो चन्दों या पंवारों के अधीन थे। ऐसे में एक क्षेत्र था रंगीलो बैराट जिसके राज्य क्षेत्र में आधुनिक चैखुटिया के आसपास का क्षत्रे़ सम्मिलित था। इस राज्य मे कत्यूरी राजा दौलाशाही या दुलाशाही थे। यह मात्र एक संयोग ही नही था कि राजा दौलाशाही की भी कोई संतान नही थी बल्कि यह विधाता द्वारा लिखे जाने वाली एक अद्भुत प्रेम कहानी की शुरूआत थी। अतः वह भी अपनी रानी धर्मा देवी के साथ बड़ी आशा लेकर बागनाथ धाम आये थे। चूकि दोनो अपने-अपने क्षेत्रों के सरदार या राजा थे और दोनो में मिलन हुआ और प्रण हुआ कि यदि उनकी संताने एक के घर बेटा और दूसरे के वहा बेटी होती है तो वह उनकी आपस मे शादी कराएगे और इस नई-नई दोस्ती को भगवान के आर्शीवाद के रूप में रिश्तेदारी में बदलेगे और इस प्रकार इस कहानी की नींव उस दिन भगवान बागनाथ को साक्षी मान कर रखी जा रही थी।पढे़ कुमाऊ के लोकदेवता गंगनाथ देवता की प्रेम कहानी एवं उनके देवता बनने की कहानी
हुण सरदार-
हुणों ने इस क्षेत्रों पर कई बार छोटे-छोटे समय के लिए शासन किया। प्रत्येक बार उनको इस क्षेत्र से हरा दिया गया। अतः 15वीं सदी तक हुण कुछ हद तक तिब्बत क्षेत्र में ही बचे रह गये थे जो कि एक सीमित क्षेत्रों में शासन करते थें। उस समय को हुण सरदार विक्खी पाल या कही-कही पर ऋषिपाल था। जो कि एक विशेष कड़ी के रूप में इस कहानी से जुडा है।इसके अलावा गुरू गोरखनाथ व अन्य भी इस कहानी के हिस्सेदार है। वैसे उत्तराखंड में गोरखपंथी की बात करे तो इसमे भी विवाद या मतभेद है कि कब यह पंथ का आगमन उत्तराखंड में हुआ। इतना जरूर है कि उस समय तक यह इस क्षेत्र में प्रचलित था क्योंकि इतिहासकारों ने 15वी सदी के अंतिम वर्षों के पंवार राजा अजयपाल को गोरखपंथी समुदाय से संबंधित बताते है।
जैसा कि दोनो कत्यूरी राजा एंव शौका सरदार दंपतियों की एक ही व्यथा थी और दोनों ने भगवान बागनाथ से एक ही वरदान मांगा, दोनों का आपस में परिचय इसी बागनाथ धाम के द्वार पर हुआ, पहले दोनों आपस में गले मिले और फिर दोनों ने प्रण किया कि एक को पुत्र व दूसरे को पुत्री प्राप्त होगी तो हम उन्हें परिणय सूत्र में बांधंगे। समय बीतते गया और भगवान बागनाथ का आर्शीवाद दोनो परिवारों को प्राप्त भी हुआ वह भी ठीक वैसा ही जैसा वह चाहते थे, भगवान बागनाथ की कृपा से राजा दुलाशाही के घर में पुत्र जिसका नाम मालूशाही तथा सुनपति शौक के घर में रूपवती कन्या का जन्म होता है और जिसका नाम राजुला रखा जाता है।
राजा दोलूशाही ज्यातिषी में विश्वास रखते थे अतः उन्होंने मालूशाही मे जन्म के बाद ज्योतिषी को बुलाया और बच्चे के भाग्य पर विचार करने को कहा। ज्योतिषी ने बताया कि यह बालक अल्पायु है इसका एक ही निवारण है जन्म के पांचवे दिन इसका ब्याह किसी नौरंगी कन्या से करना होगा। राजा ने अपने पुरोहित को शौका देश भेजा और सुनपति की कन्या राजुला से ब्याह करने की बात की, सुनपति तैयार हो गये और खुशी-खुशी अपनी नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही के साथ कर दिया। किन्तु कुछ ही समय बाद राजा दोलूशाही की मृत्यु हो गई। इस अवसर का फायदा दरबारियों ने उठाया और यह प्रचार कर दिया कि जो बालिका मंगनी के बाद अपने ससुर को खा गई, अगर वह इस राज्य में आयेगी तो अनर्थ हो जायेगा। इसलिये सभी ने निश्चय किया कि यह बात मालूशाही से गुप्त रखी जाये। परन्तु वे शायद यह नही जानते थे कि दोनो का जोडा बागनाथ के आर्शीवाद से बन कर आया है अतः कब तक इस बात को छुपाया जा सकेगा। क्योंकि बचपन से ही दोनो बच्चे एक दूसरे को सपनो में ऐसे देखा करते थे मानो वे एक दूसरे के सचमुच सामने हो। बचपन बीता और दोनों बच्चे बड़े हो जाते हैं। कहते है कि बड़ी होकर एक दिन राजुला ने जिज्ञाषा में अपनी मां से कुछ प्रश्न पूछे जैसे- मां दिशाओं में कौन सी दिशा प्यारी है ? पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा है ? देवों में कौन देव महान है ? राजाओं में कौन राजा ? तथा देशों में कौन देश ?
मां ने जो उत्तर दिये वह ऐसे थे मानो वह राजूला मे मन को भांप गयी जिसमे उसने कहा- दिशाओं में सबसे प्यारा पूर्व दिशा जहा से सूर्य उदित होता है। पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा है क्योंकि उसमें देवता का वास होता है। देवताओं में सबसे बड़े महादेव हैं क्योंकि पाप के संहारक होते है। राजाओं में राजा हैं रंगीला मालूशाही। और देशों में देश है रंगीलो बैराठ ।
मां की ये बातें सुनकर राजुला धीमे से मुस्कराई और उसने अपनी मां कहा कि मां मेरा विवाह रंगीलो बैराठ में ही करना।
ऋषि मार्कण्डेय की तप स्थली बागेश्वर की पौराणिक व आधुनिक महत्ता
राजूला का बैराट नगर जाना
राजूला अब आगे निश्चय करती है कि वह खुद मालूशाही से मिलने बैराट राज्य जायेगी। जैसा कि राजूला मालूशाही को लेकर अनेक गाथाए एंव कथाए प्रचलित है उपयुक्त तक तो लगभम सभी कहानियां समान है लेकिन इसके बाद की कहानी कुछ रोचक तथ्यों के साथ अलग-अलग तरह से बयां होती है। राजूला का बैराट राज्य जाना कैसे हुआ। एक कहानी कहती है कि- समय बितने के साथ ही सुनपति शौका का कत्यूरी राजा को दिया हुआ वचन भी फिका पडने लगा था, वैसे भी अब राजा का देहावसान हो चुका था। अब उसके व्यापार में हुण प्रदेश का बहुुत महत्व हो गया था। जैसा कि राजूला बहुत सुन्दर थी अतः हुण नरेश विखीपाल भी उसे चाहने लगा और उससे शादी करने हेतु सुनपति को प्रस्ताव भेजा। वह किसी भी दशा में राजूला को पाना चाहता था अतः उसने सुनपति शौका साथ मे ही धमकाया भी कि अगर उसने अपनी कन्या का विवाह विखीपाल से नहीं कराया तो, वह उनके प्रदेश को बंजर में तबदील कर देगा तथा उसका व्यापार बंद करा देगा। क्योंकि सुनपति एक व्यापारी सरदार था जिसका व्यापार हुणों के साथ भी था। हुण विखीपाल ने सुनपति शौका से वचन ले लिया। हूण राजा विखीपाल की धमकी, से व्यथित होकर राजुला ने निश्चय किया कि वह किसी भी प्रकार से मालूशाही तक अपना संदेशा पहुचाएंगी कि उसकी शादी हुण देश में होने जा रही है जो कि वह नही चाहती। अतः उसने स्वय वैराट जाने और मालूशाही से मिलने का निश्चय किया। उसने अपनी मां को बार-बार पूछने पर बैराट के रास्ते के बारे में पता चला, जो कि पहले तो उसकी मां ने यह कहकर मना कर दिया कि तुझे तो हुण प्रदेश जाना है, मगर राजूला की अनगिनती विनती और बेटी के प्यार ने उसे झुका दिया और उसने रास्ता तो बताया ही और साथ ही यह भी बताया की उसे मालूशाही को क्या संदेश देना चाहिए। राजूला एक हीरे की अंगूठी लेकर रंगीली वैराट की ओर चल पड़ी। वह पहाड़ों को पारकर मुनस्यारी और फिर बागेश्वर पहुंची, उसने बागेश्वर बागनाथ धाम मे बैराट पहुचाने हेतु प्रार्थना की और वहा से बैराट की ओर चल पडी लगभग 7 दिन व 7 रात के सफर के बाद अंततः वह बैराट राज्य पहुच जाती है।
वही दूसरी ओर मालूशाही ने शौका देश जाकर राजुला को विवाह करने की जिद लगाये बैठा था, उसकी मां ने पहले बहुत समझाया। लेकिन जब वह जिद पर अडा रहा तो उसकी मां ने उसे बारह माह निद्रा जड़ी सुंघा दी गई, जिससे वह गहरी निद्रा में सो गया। इसी दौरान राजुला मालूशाही के पास पहुंची और उसने मालूशाही को उठाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह तो जड़ी के वश में था, सो नहीं उठ पाया, निराश होकर राजुला ने उसके हाथ में साथ लाई हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिर के पास में रख दिया और रोते-रोते अपने देश लौट गई। जब रानी का लगा कि अब मालूशाही सामान्य अवस्था मे आ गया होगा, मालूशाही की निद्रा खोल दी गई, जैसे ही मालूशाही होश में आया उसने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी तो उसे सब याद आया और उसे वह पत्र भी दिखाई दिया जिसमें राजूला ने अपनी मां के कहने पर संदेशा लिखा था कि ” हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो निद्रा के वश में था, अगर तूने अपनी मां का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश आना, क्योंकि मेरे पिता मेरी शादी अब हुण प्रदेश में कर रहे हैं।” यह सब देखकर राजा मालूशाही को बहुत पश्चाताप हुआ और कुछ दिनों तक सोचने के पश्चात उसने निश्चय किया कि इस समस्या के समाधान हेतु वह अपने गुरू गोरखनाथ की शरण में जायेगा। गुरू के बताये अनुसार उसने वह सब किया जो-जो उसे करने के लिए कहा गया यहा तक कि उसने अपना राजसी मुकुट व कपड़े नदी में बहा दिये तथा गेरूवे वस्त्र धारण कर धूनि की वभूति (राख) को अपने शरीर में मलकर उसी साधू वेश मे अपने राजपरिवार में भिक्षा मागंने तक गया। भिक्षा मांगते समय राजमाता ने मालूशाही को पहचान लिए और दुखी होकर उसे समझाने की कोशिश की मगर मालूशाही नही माना। वह कहता रहता कि मां तुम चिंता मत करो मैं राजुला को लेकर आऊंगा, मुझे अभी अपनी राजुला को लाने हूण प्रदेश जाना हैे। रानी मां धर्मा ने उसे बहुत समझाया, लेकिन मालूशाही फिर भी नहीं माना, विवश होकर रानी ने अपने दिल पर पत्थर रखकर उसे हुण प्रदेश जाने की इजाजत सशर्त दे दी, कि वह अपने साथ कुछ सैनिक भी लेकर जायेगा, इस प्रकार मालूशाही अपने कुछ सैनिकों को साथ लेकर हुण प्रदेश को प्रस्थान करता है।
मालूशाही जोगी के वेश रखकर हूण प्रदेश पहुंचा, कहा जाता है कि उस समय इस प्रदेश में विष की कई बावडियां थी। मालूशाही और उसके सैनिकों ने रास्ते में थकान के कारण उन बावडियों पानी पीया और पानी पीकर सभी अचेत हो गये, तभी विष की अधिष्ठात्री विषला ने मालू को अचेत देखा तो, उसे उस पर दया आ गई और उसका विष निकाल दिया। मालू घूमते-घूमते राजुला के महल पहुंचा, वहां बड़ी चहल-पहल थी, क्योंकि विखीपाल राजुला को ब्याह कर लाया था। मालू ने अलख लगाई और बोला ’दे माई भिक्षा!’ तो इठलाती और गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई और बोली ’ले जोगी भिक्षा’ पर जोगी उसे देखता रह गया, उसे अपने सपनों में आई राजुला को साक्षात देखा तो सुध-बुध ही भूल गया। जोगी ने कहा- अरे रानी तू तो बड़ी भाग्यवती है, यहां कहां से आ गई? राजुला ने कहा कि जोगी बता मेरी हाथ की रेखायें क्या कहती हैं, तो जोगी ने कहा कि ’मैं बिना नाम-ग्राम के हाथ नहीं देखता’ तो राजुला ने कहा कि ’मैं सुनपति शौका की लडकी राजुला हूं, अब बता जोगी, मेरा भाग क्या है’ इस बात से मालूशाही को यकीन हो गया कि यह सुन्दरी राजूला ही है, जोगी भेष में मालूशाही ने उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर कहा ’तेरा भाग में यह हुण प्रदेश नहीं बल्कि रंगीलो वैराट लिखा है तू हया कैसे आ गयी’। जोगी की इन बातो से राजूला को यकीन हो गया कि यह कोई मामूली जोगी नहीं बल्कि बहुत ज्ञानी है, राजुला ने रोते हुये उसे अपनी सारी कहानी बता डाली। कि कैसे उसके पिता ने उसका विवाह हुण नरेश विखीपाल से कराया। जोगी के भेष मे मालूशाही अपने को रोक नही पाया और अपना जोगी वेश उतार डाला और राजूला को भी अपनी पूरी कहानी बता दी कि कैसे उसने राजूला के लिए जोगी वेष रखा और उसे छुडाने आया है।
तब राजुला ने विक्खी पाल को बुलाया और कहा कि ये जोगी बड़ा काम का है और बहुत विद्यायें जानता है, यह हमारे काम आयेगा। तो विक्खीपाल मान जाता है, लेकिन जोगी के मुख पर राजा सा प्रताप देखकर उसे शक तो हो ही जाता है। उसने मालू को अपने महल में तो रख लिया, लेकिन उसकी टोह वह लेता रहा। कुछ दिनों बाद ही विखीपाल को यह पता चल ही गया कि यह साधु कोई और नही बल्कि बैराट का राजा मालूशाही है, क्योंकि उसने मालूशाही पर नजर रखनी शुरू कर दिया था। विखीपाल ने उसे मारने क षडयंत्र किया और खीर बनवाई, जिसमें उसने जहर डाल दिया और मालू को खाने पर आमंत्रित किया और उसे खीर खाने को कहा। खीर खाते ही मालू मर गया। उसकी यह हालत देखकर राजुला भी अचेत हो गई। उसी रात मालू की मां को सपना हुआ जिसमें मालू ने बताया कि मैं हूण देश में मर गया हूं। तो उसकी माता ने उसे लिवाने के लिये मालू के मामा मृत्यु सिंह (जो कि गढ़वाल की किसी गढ़ी के राजा थे) को सिदुवा-विदुवा रमौल और बाबा गोरखनाथ के साथ हूण देश भेजा।
सिदुवा-विदुवा रमोल के साथ मालू के मामा मृत्यु सिंह हूण देश पहुंचे, बोक्साड़ी विद्या का प्रयोग कर उन्होंने मालू को जीवित कर दिया और मालू ने महल में जाकर राजुला को भी जगाया और फिर इसके सैनिको ने हूणियों को काट डाला और राजा विक्खी पाल भी मारा गया। तब मालू ने वैराट संदेशा भिजवाया कि नगर को सजाओ मैं राजुला को रानी बनाकर ला रहा हूं। मालूशाही बारात लेकर बैराट पहुंचा जहां पर उसने धूमधाम से शादी की। तब राजुला की कही बातों को आज के कथाओं में ऐसे बताया गया है कि ’मैंने पहले ही कहा था कि मैं नौरंगी राजुला हूं और जो दस रंग का होगा मैं उसी से शादी करुंगी। आज मालू तुमने मेरी लाज रखी, तुम मेरे जन्म-जन्म के साथी हो। अब दोनों साथ-साथ, खुशी-खुशी रहने लगे और प्रजा की सेवा करने लगे। यह कहानी उनके अजर-अमर प्रेम की दास्तान बन गयी।
राजूला मालूशाही की अमर प्रेम कहानी को कई अन्य प्रकार से भी लिखा या सुनाया जाता है। जिसमे कहानी बैराट के राजा और सूकपति शौका द्वारा बागनाथ में किया गया प्रण और उसके बाद उनके दोनो के घरों में सन्तान प्राप्ति तक कोई अंतर नही है मगर दूसरी कहानियों में इसके बाद जब बच्चे बडे होते है शौका राजा अपना प्रण भूल जाता है तथा उसके बदले वह हुण नरेश विखीपाल से व्यापारिक समझौते के तहत अपनी बेटी राजूला का विवाह करने हेतु वचन देता है। मगर विधाता के दरवार मे किया गया प्रण या वचन तोडना या उसके खिलाफ जाना संभव नही है। भगवान बागनाथ जी की कृपा से दोनो बच्चों को बचपन से ही एक दूसरे के सपने होते रहते थे वह भी स्पष्ट वेशभूषा के साथ। ऐसे में राजूला के मन मे मालूशाही और मालूशाही के मन मे राजूला का चित्र पूरी तरह से छप चुका था। राजूला ने बडी होकर एक दिन अपनी मां से कुछ सवाल पूछे जैसा कि ऊपर वर्णित है। उसके बाद सूनपति शौका मकर संक्राति के दिन बागेश्वर जो कि एक व्यापारिक मंच था गया तो संयोग वश वहा मालूशाही भी आया था। राजूला और मालूशाही दोनो ने एक दूसरे को देखते ही पहचान लिया और आपस मे मिलते रहे, क्योंकि मेला बहुत दिनो तक चला था। उन दोनो का मिलने की खबर जब शौका सूनपति को हुई, तो वह अगले ही दिन वह राजूला को लेकर अपने राज्य आ गया वह नही चाहता था कि राजूला माजूशाही से मिले, मगर राजूला की बेचैनी दिनो-दिन बढती जा रही थी। उससे अपनी मां से सहायता मांगी और बैराट प्रदेश पहुंच गयी राजा मालूशाही से मिलने, किन्तु मालूशाही के गहरी नींद मे होने के कारण वह उसे एक खत व अपनी अंगूठी पहचान स्वरूप दे आयी। मालूशाही जैसे ही नींद से जागा उसे पूरी कहानी का पता चल गया कि क्यू राजूला बागेश्वर छोडकर चली गयी थी, और अब तो उसकी शादी हुण नरेश से होने वाली थी। अतः राजा मालूशाही ने निश्चय किया कि वह राजूला को किसी भी प्रकार अपने राज्य लायेगा और उसी से शादी करेगा। किन्तु शौका प्रदेश मे मालूशाही को मार दिया जाता है जिसके बारे में उसकी मां राजी धर्मा को स्वप्न मे होता है। वह कुछ तांत्रिको को अपने भाई के साथ शौका प्रदेश मे मालूशाही के ढुढने व वापस लाने के लिए भेजती है कहा जाता है कि तांत्रिकों ने मालूशाही को पुनः जीवित कर दिया और वह अपनी राजूला को लेकर कत्यूर राजवंश बैराट ले आया।
आज के संदंर्भ में इस कहानी में कुछ-कुछ स्थान पर अकल्पनीय तथ्य जरूर है मगर इस कहानी की सच्चाई जो कि सैकडो वर्षों से चली आ रही है नकारा नही जा सकता है। उस समय यहा तक की आज भी कुछ विशेष स्थानों और परिस्थितियों में भगवान के अकल्पनीय शक्ति को देखा जा सकता है हो सकता है कि कहानी के अंत में मालूशाही का फिर जिंदा होने एक ऐसा ही चमत्कार हो। जो भी हो यह कहानी आज के हमारे उत्तराखंड की शान व गौरव गाथा में एक स्वर्णिक पृष्ठ है। जिसे उत्तराखंड की लोककथाओ, गाथाओं एवं आंचलिक गीतो में प्रमुख स्थान मिला है इसके अलावा जगदेच पंवार, रामी बौराणी, आदि कहानी को भी विस्तार पूर्वक गाया जाता है। जो यहाँ की लोक गाथाओं के प्रमुख प्रेमी युगल हैं। झोडे, चांचरी, न्योले, छोलिया, बाजूबंद आदि लोक नृत्यों एवं लोक गीतों के माध्यम से इनके विषय में काफी कुछ जानने एवं समझने को मिलता है।
Big thank you
ReplyDeleteMuje rajula Malushahi ke bare Mai padne ki bahut ichha thi.jo aaj Puri ho gayi
Big Big thank you
Thank You comment ke liye.
DeleteThis seems a great love story of all time. I read many about uttarakhands mirecle
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