एस्टेराॅएड 1998 RO2 के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां
अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक एक एस्टरॉयड (उल्कापिंड), जिसे उन्होने 1998 OR2 नाम दिया है 29 अप्रैल 2020 को UTC मानक समयानुसार सुबह 9ः56 बजे और भारत के समयानुसार IST 15ः26 को करीब 19 हजार किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गुजरेगा। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार यह एक सामान्य आकाशीय घटना के अलावा कुछ और नही है उनके अनुसार इस एस्टरॉयड से धरती या उसके आसपास के वातावरण पर इसका कोई प्रभाव या नुकसान नही होगा, हां मगर वैज्ञानिको को इसके अध्ययन से फायदा जरूर होगा। इसलिए लोगों को घबराने की आवश्यकता नहीं है।इस एस्टरॉयड का MPCनाम या तकनीकी नाम (52768) 1998 OR2, जिसे सामान्यतः 1998 ओआर2 से जाना जाता है, क्योंकि यह वर्ष 1998 में खोजा गया था। इसका व्यास लगभग 2 किलामीटर (2.06 किलामीटर) है। सर्वप्रथम इसे 24 जुलाई 1998 को हेकलाला ऑब्जर्वेटरी, हवाई के NEAT ( नियर अर्थ एस्टरॉयड ट्रेकिंग) प्रोजेक्ट के वैज्ञानिको से देखा या खोजा था। तभी से इसकी कक्षा की निरंतर ट्रेकिंग की जा रही है। प्यूर्टो रिको स्थित अरेसिबो ऑब्जर्वेटरी ने मार्च 2020 में इसकी पहली तस्वीर ली है। जो कि पृथ्वी के समीप खतरनाक अमोर समूह के एस्टरॉयड मे शामिल यह सबसे चमकील उल्कापिंड है इसलिए इसके खतरनाक होने की संभावना बढ जाती है। इसका परिक्रमण काल 1344 दिनो या 3.68 वर्ष का एंव अवलोकन आर्क 32 वर्ष का होता है, इसका परिक्रमण पथ निर्धारित लेकिन चपटा है।
29 अप्रैल को यह पृथ्वी के करीब से होकर गुजरेगा। वैसे तो इसका आकार सामान्य से बहुत बडा है फिर भी इसे खुली आखों से नही देखा जा सकता है इसका कारण है कि पृथ्वी के नजदीक से गुजरने पर भी यह पृथ्वी एंव चंद्रमा की दूरी की तुलना में लगभग 16 गुना दूर होगा। 29 अप्रैल को इसकी औसत दूरी लगभग 64.5 लाख किलोमीटर (6449760 किलोमीटर ) होगी। (पृथ्वी से चंद्रमा 239,000 मील या 385,000 किमी दूरी पृथ्वी है)
इसके आकार व गति को देखते हुए वैज्ञानिकों ने माना कि अगर यह पृथ्वी को मातृ छूकर भी निकलता तो पृथ्वी में भयंकर सूनामी आ सकती थी।
2009 में, लोवेल ऑब्जर्वेटरी नियर-अर्थ एस्टेरॉयड फोटोमेट्रिक सर्वे के दौरान सल्वाडोर, ब्राजील मे वैज्ञानिकों द्वारा 1998 RO2 के लाइटकर्वे रोटेशन औसतन 4 घंटा मापी थी, जो बाद में मार्च 2020 मे रडार अवलोकन द्वारा इसकी सटीक रोटेशन अवधि 4.1 घंटा बतायी।
इसकी कक्षा व कक्षीय गति से वैज्ञानिको ने अनुमान लगाया कि लगभग 59 वर्ष बाद 2079 में इसकी पुनः पृथ्वी के करीब आने की संभावना है।
अमोर समूह के एस्टरॉयड
अमोर समूह क्षुद्रग्रह पृथ्वी के नजदीक परिक्रमित एस्टरॉयडो का एक समूह है। इस समूह के एस्टरॉयडो का कक्षीय पथ पास-पास होता है जिस कारण इस समूह को काफी खतरनाक माना गया है। हालांकि इन उल्कापिंडो की कक्षा पृथ्वी से काफी दूर है यानी इनके पृथ्वी के करीब होने के बावजूद भी पृथ्वी पर टकराने की संभावन काफी कम है इस एस्टराॅयडो की कक्षीय अवधि लगभग एक वर्ष से अधिक ही होती है।ऐस्टरौएड एंव इसके बारे मे अन्य तथ्य
खगोलीय गतिविधि कई वर्षो से चल रही थी। मगर सबसे पहला ऐस्टरौएड ग्यूसेप पियाजी द्वारा 1819 में खोजा गया जिसका नाम रोमन कृषि की देवी सेरेस के नाम से सेरेस नाम दिया गया और उस समय इसे भी एक ग्रह ही समझा गया था। उसके बाद कई ऐस्टरौएड खोजे गये मगर वर्ष 1890 में लगभग 300 ऐस्टरौएड खोजे गये थे, जो कि एक रिकाॅर्ड था।
पालस व फोर-वेस्टा दो प्रमुख बडे ऐस्टरौएड है जिनका व्यास क्रमशः 538 व 549 किमी का है। इसमें से फोर-वेस्टा एकमात्र ऐस्टरौएड है जिसे की खुली आखों से देख सकते है।
1891 में, मैक्स वुल्फ ने ऐस्टरौएडो का पता लगाने के लिए आस्ट्रोफोटोग्राफी के इस्तेमाल की शुरुआत की, जो लंबे समय तक एक्सपोजर फोटोग्राफिक प्लेट्स पर छोटी धारियों के रूप में दिखाई दिए।
संयुक्त राष्ट्र ने 30 जून को अंतर्राष्ट्रीय क्षुद्रग्रह दिवस की घोषणा की ताकि क्षुद्रग्रहों के बारे में जनता को शिक्षित किया जा सके। इसी दिन वर्ष 1908 में रूस के साइबेकिरया में टंगुस्का एस्टेराएड की वर्षगांठ मनाई गयी, जो अपने आप मे एक अनूठी पहल थी।
उल्कापिंड एंव एस्टेराॅएड की कक्षीय प्रवृति
चूकि उल्कापिंड एंव एस्टेराॅएड का आकार सामान्यतः छोटा होता है जिस कारण आकाशीय घटनाओं से इनके कक्षीय पथ पर भी परिवर्तन आ जाता है। ऐसे में किसी भी पिंड की अन्य ग्रहों से टकराने की संभावना बनी रहती है। 1998 ओआर2 के बारे मे वैज्ञानिको का पिछले 1.5 महिनो की ट्रेकिंग यह साबित कर रही है कि इसकी कक्षा मे कोई परिवर्तन नही के बराबर आया है। ऐसे मे इसकी कोई संभावना नही कि यह पृथ्वी के अनुमानित आंकडे के करीब आयेगा।अंतरिक्ष वैज्ञानिको द्वारा इस साल जनवरी मे प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया कि हर सौ साल लगभग 50 हजार भिन्न-भिन्न तरह के उल्कापिंडो एंव एस्टेराॅएडो की धरती संभावनाएं बनी रहती हैं। इस संभावना को देखते हुए कहा जा सकता है कि औसतन हर साल 500 व हर दिन औसत 1.5 ऐसे आकाशीय पिडों की संभावना रहती है। मगर आंकडे बताते है कि पिछले कई दशकों से कोई भी बडा आकाशीय पिंड पृथ्वी से नही टकराया है। इस दूसरे तरह से समझ सकते है जिसमे यह कहा जाता है कि छोटे पिंड यानी कुछ मीटर व्यास के उल्कापिंड जैसे ही पृथ्वी के वायुमंडल में आते हैं, तीव्र गति व वायुमंडल मे उपस्थित गैसों से क्रिया से ही जल जाते हैं। इसके कुछ छोटे-छोटे टुकड़े ही धरती की सतह पर पहुंचते हैं, जिनसे किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता है।
गौरतलब है कि इस उल्कापिंड के बारे में अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने लगभग डेढ़ महीने पहले ही खुलासा कर दिया था। तब बताया गया था कि इस उल्कापिंड का आकार किसी पर्वत के जितना है। साथ ही यह आशंका जताई गई थी कि जिस रफ्तार से यह उल्कापिंड बढ़ रहा है, अगर पृथ्वी की सतह से जरा-सा भी टकराया, तो बड़ी सुनामी आ सकती है।
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