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Sunday, April 5, 2020

Sailing stone I Moving Stones I सेलिंग स्टोन या मूविंग स्टोन I अपने आप खिसकते रहते हैं पत्थर डेथ वैली

अद्भुत रहस्य


Sailing stones displacement about 250 metres

दुनिया में कई रोचक और आश्चर्यचकित कर देने वाले रहस्य छिपे है, उसमें से कई तो प्रत्यक्ष दिखे या सबूत मिले है तो कईयों के बारे में कई स्थानीय मान्यताएं है आज के समय मे जब कि विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है तब ऐसे रहस्य वैज्ञानिको के साथ-साथ आम लोगो के लिए जिज्ञासा का कारण बने है आज के समय में कोई भी इन चमत्कारी घटनाओं के पीछे छिपे कोई सैद्धांतिक तथ्यों को मानने को तैयार तो नही है लेकिन ऐसे कई रहस्य जिनको सुलझाने में विज्ञान और तकनीक भी कमजोर हो चली है लोगो को ऐसे रहस्य जानने मे जिज्ञासा तो बनी ही हुई है। इन्हीं अद्भुत स्थानों या घटनाओं को लेकर मै डाटा एकत्रित करने प्रकाशित करना चाहता हूँ, इसी उम्मीद मे कि इनको जानकर हममंे जिज्ञासा तो बढेगी ही साथ ही साथ हम पृथ्वी अलग-अलग हिस्सो से जुडे रोचक तथ्य भी जान सकेगंे।

सेलिंग स्टोन या मूविंग स्टोन 

आज का विषय है सेलिंग स्टोन या मूविंग स्टोन की जो कि यूएसए के पूर्वी कैलिफोर्निया के डेथ वैली को और भी विशेष बनाता है। यह सामान्य रूप से एक रेगिस्तान है जो एक ऐसी जगह है जहां वैज्ञानिकों को हमेशा कुछ न कुछ चैंकाने वाली जानकारी या प्रमाण मिलते रहते है। इस जगह की सबसे ज्यादा जो चीज हैरान करती है, वह है यहां के अपने-आप खिसकने वाले पत्थर। जी हां, यहां इस रेगिस्तान के पत्थर बिना किसी की मदद के खिसकते है, जिन्हें सेलिंग स्टोन्स के नाम से जाना जाता है। यहां के रेस ट्रैक क्षेत्र में मौजूद भिन्न-भिन्न वजन के, यहा तक की 320 किलोग्राम तक के पत्थर भी अपने आप खिसक कर एक जगह से दूसरी जगह चले जाते हैं। डेथ वैली में पत्थरों का खुद-ब-खुद खिसकना वैज्ञानिकों के लिए भी एक पहेली बनी हुई है। आज विज्ञान ने भले ही कितनी भी तरक्की कर ली हो, लेकिन दुनिया में ऐसे कई रहस्य आज भी हैं, जो अनसुलझे हैं, जिनके रहस्यों को आज तक वैज्ञानिक भी सुलझा नहीं पाए हैं। यह उनमें से एक रहस्य है जिस पर 1900 ई0 से अनेको वैज्ञानिकों द्वारा काम चल रहा है, कुछांे ने इसके पीछे कुछ परिकल्पनाएं या सिद्धांत देकर छोड़ दिया है तो कुछ अभी तक अध्ययन में लगे हुए है।


अपने आप खिसकते रहते हैं पत्थर


डेथ वैली में रेस ट्रैक प्लाया 2.5 मील उत्तर से दक्षिण और 1.25 मील पूरब से पश्चिम तक बिल्कुल सपाट है, लेकिन यहां बिखरे पत्थर अपने आप खिसकते रहते हैं। इतना ही नहीं इनके खिसकने के बाद के निशान जिसे ट्रेक कहते है देखे जा सकते हैं। यहां ऐसे 150 से भी अधिक पत्थर हैं। हालांकि किसी ने भी अपनी आंखों से पत्थरों को खिसकते हुए नहीं देखा है। सर्दियों में ये पत्थर करीब 250-300 मीटर से ज्यादा दूर तक खिसके मिलते हैं।


रिसर्च इतिहास
This stone's displacement around 260 metres of trail

रेसट्रैक प्लाया में, 1900 ई0 के शुरुआती सालों से खिसके हुए पत्थरों के ट्रेक या रास्ते जिन पर खिसकर वे स्थानांतरित हुए है, का अध्ययन किया था। लेकिन कोई ठोस कारणों का पता नही चला, और शोध का विषय बना रहा जिसके लिए कई परिकल्पनाएं एवं धारणाएं बनी रही। 
1915 में जोसेफ क्रूक ने पहली बार रेसट्रैक प्लाया साइट का दौरा किया। बाद के वर्षों में, रेसट्रैक मे भूवैज्ञानिकों जिम मैकलेस्टर और एलन एग्न्यू से दिलचस्पी जगाई, जिन्होंने 1948 में इस क्षेत्र का मानचित्रण किया और एक भूगर्भिक सोसायटी ऑफ अमेरिका में स्लाइडिंग चट्टानों के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित की। हालांकि, अगस्त 2014 तक, चट्टानों को हिलाने का टाइमलैप्स वीडियो फुटेज प्रकाशित किया गया है, जिसमें कुछ पत्थरों से ऐसा आभास हो रहा था मानो ये हवा की तेज गति से बर्फ की पतली चादर के ऊपर फिसल रहे हो, यद्यपि यह भी एक धारणा ही है। 


                     नासा का अध्ययन
During the research the Camera set up

नासा के वैज्ञानिक बॉब शार्प एंड ड्वाइट कैरी ने मई 1972 में एक रेसट्रैक स्टोन मूवमेंट मॉनिटरिंग प्रोग्राम शुरू किया। इसके तहत कुछ पत्थरों लगभग 30 पत्थर के ताजा पटरियों(जिस रास्ते पत्थर खिसकर जाते है) को और उनके स्थानों को चिह्नित किया गया। प्रत्येक पत्थर को एक विशेष नाम दिया गया था, यह अभियान सात साल के लिए जारी रखा। जैसे कि अभी तक यह अवधारणा या परिकल्पना थी कि इन पत्थरों को खिसकने के लिए बर्फ के टुकडे और हवा का सहारा मिलता है इसी के अध्ययन के लिए शार्प और कैरी ने चयनित पत्थरों को समतल करके इस परिकल्पना (धारणा) का अध्ययन किया। जिसमें एक पत्थर का कोरल बनाया गया जिसका काम ट्रेक को मोनिटर करना था, जिसके साइज 1.7 मीटर (5.5 फीट) व्यास और वजन 1 पौंड (0.45 किलो) था। अध्ययन के पहले साल की सर्दियों में चुने हुए 30 पत्थरों में से 10 मे विस्थापन देखा गया, ये सभी पत्थर कुल  212 फीट (65 मीटर) की दूरी तक विस्थापित हुए थे। अगले छह सर्दियों में से सिर्फ दो सर्दियों (दो साल की सर्दियों में) में ही कुछ पत्थर में स्थानान्तरण हुआ। जबकि गर्मियों में किसी भी पत्थर मे स्थानांतरित करने की पुष्टि नहीं हुई, तथा किसी साल की सर्दियों में, केवल कुछ पत्थर ही  मूव हुए थे। कुल मिलाकर, सात वर्ष के अध्ययन के दौरान सभी मॉनिटर किए गए पत्थरों में से दो ही स्थानांतरित हुए। इन सबमें नैन्सी (पत्थर एच) 2.5 इंच (6.4 सेमी) व्यास का सबसे छोटा पत्थर था। यही पत्थर पूरे अध्ययन के दौरान सबसे दूर तक खिसका मिला (लगभग - 260मीटर), इसके साथ ही एक साल के बीच भी सबसे ज्यादा विस्थापन इसी पत्थर मे मिला। स्थानांतरित हुए पत्थर में सबसे बडा पत्थर 80 पौंड (36 किलो) का था।

                  अद्भुत पत्थर है करेन 


This is most amazing stone once in 1994 it was disappeared

इस सब के अलावा करेन (पत्थर जे) नाम का पत्थर एक डोलोमाइट का ब्लॉक था, जिसका अनुमानित भार 700 पौंड (320 किलो) थ। अभियान अवधि के दौरान करेन के कोई भी विस्थापन नहीं देखा गया। वैज्ञानिको मे इसके विस्थापित ट्रेक (लगभग 170 मीटर) को लेकर मानना था कि शायद यह ट्रेक इसका शुरूआती ट्रेक हो सकता है जब कि यह पत्थर प्लेआ की ढीलि या फिर गिली सतह पर गिरने से बनी हो। इसके बाद करेन को लेकर हैरान करने वाला साल मई 1994 था जब यह पत्थर गायब हो गया था, उस समय इसका अनुमान लगाया गया कि संभवतः 1992 से 1993 के दौरान असामान्य रूप आद्र सर्दी में यह गायब हो गया हो। क्यूकि इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नही था कि करेन को किसी भी तरह से हटाया गया हो या तोडा गया हो अगर ऐसा होता तो प्लेन में इसकी क्षति या निशान जरूर होते। हालांकि रहस्मयी तरीके से इसे वर्ष 1996 में सैन जोस भूविज्ञानी पाउला मेसिना द्वारा फिर से खोजा गया। 


Mount Rushmour I Shrine of Democracy I चट्टानी कलाकारी का अद्भूत नमूना माउंट रशमौर दक्षिण डकोटा ।


वैज्ञानिक सिद्धांत


इस प्रकार के अद्भुत स्थान व घटना के बारे में तो कोई ठोस सबूत नहीं मिले है कि क्यों इस प्रकार की घटनाए इस विशेष स्थान पर होती है मगर भिन्न-भिन्न समय पर किये गये अध्ययन व रिसर्च के आधार पर वैज्ञानिकों के समूहो ने अनेक मत दिये जो सामान्यतया परिकल्पनाएं या सिद्धांत कहलाते है। यहा विभिन्न प्रकार के सिद्धांत और परिकल्पनाएं हैं जो कि इन चट्टानों के स्थानांतरण की व्याख्या करते है। इन सब के बावजूद आज तक इन पत्थरों के खिसकने के रहस्य के कारणो का पता नहीं चल पाया।


  • अधिकांश सिद्धांत इस घाटी में कम तापमान और बेहद तेज हवाओं पर आधारित हैं (जो कभी-कभी तूफानी तरीके से चलती हैं और जिनका औसत चाल 150-300 किमी प्रति घंटा तक हो सकती है।
  • वैज्ञानिको का मानना है, कि सर्दियों के महीनों में यहा का तापमान शून्य से नीचे तक चला जाता है जो कि बर्फ बनने या फिर पडने की संभावना दर्शाता हैै, जो कि बर्फ की लहरों की तरह रेसट्रैक प्लाया पर इन पत्थरों को भी स्थानांतरित कर सकती है। 
  • 2011 में एक अध्ययन प्रकाशित किया गया है, पत्थर मे बर्फ जमने के बाद, संयुक्त घनत्व बहुत कम हो जाता है। जिससे हवा द्वारा इन बाॅडी पर और अधिक दबाव पडता है। जिससे इनका जमीन पर फिसलने की संभावना बढ जाती है।
  • शोधकर्ताओं ने माना, पत्थरों के हर स्थानांतरण के लिए सिर्फ बर्फ को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। बल्कि इसमें हवा, बर्फ, बारिश, मिट्टी तथा मिट्टी और शैवाल के बीच एक जटिल सामन्जस्य शामिल है।


हालांकि वैज्ञानिक अब तक कोई ठोस वजह का पता नहीं लगा पाए हैं कि आखिर ये पत्थर अपनी जगह से खुद-ब-खुद खिसकते कैसे हैं, लेकिन वैज्ञानिकों का यह मानना है कि किसी इंसान या जानवर के जरिए इन पत्थरों को घसीटने के सबूत नजर दिखाई नहीं देते क्योंकि वहां मौजूद मिट्टी बिना छेड़छाड़ दिखाई देती है. इसलिए संभावना जताई  जाती है कि भौगोलिक बदलाव या तूफान के चलते पत्थर अपने आप खिसक जाते हैं. खैर पत्थर के खिसकने का रहस्य आज भी बना हुआ है।

जांच

जैसा कि रेसट्रैक प्लाया एक प्राकृतिक आरक्षित क्षेत्र में स्थित है और जैसा कि pristine wilderness नामित है, को स्थायी स्थापना और मॉनिटर करने के लिए निश्चित कैमरों की अनुमति नहीं है। नए परीक्षण के लिए जीपीएस के साथ सभी खिसकने वाले पत्थरों को उनके स्थानांतरण और स्थितियों की निगरानी के लिए सुसज्जित किया गया था। यह पता चला है, कि पत्थरों के आकार और गति पर न तो आकार और न ही वजन का एक सहज प्रभाव है। चट्टानों की स्थिति को उनके वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है।

विज्ञान ने इसे अपनी भाषा में तो सुलझा दिया है कि कैसे इन पत्थरों पर हवा और अन्य प्राकृतिक कारणों से इनकी स्थिति में बदलाव होता है शायद यहा कि मिट्टी में भी कुछ विशेष घर्षण होगा जो कि हो सकता है नासा की इस विषय पर जारी रिपोर्ट में स्पष्ट हो। 

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