Dell Laptop

Friday, April 10, 2020

Koh-i-Noor I कोहिनूर से जुड़ा इसका इतिहास I क्या ब्रिटेन, भारत को वापस करेगा कोहिनूर

कितना कीमती था या है कोहिनूर
Travel History Of Kohinoor

वैसे भारत के संदंर्भ में कोहिनूर हीरा के कीमत को पैसे मे नही आंका जा सकता है क्योंकि कोहिनूर भारत के लिए मात्र एक हीरा नही है बल्कि यह हमारे इतिहास से जुड़ा हुए एक पन्ना है जो कि किसी अन्य देश के पास है। अगर बात करे इसकी कीमत की तो मुगल बादशाह बाबर ने अंदाजा लगाया था कि इसकी कीमत उस समय पूरी दुनिया के आधे दिन कमाई के बराबर है। मगर आज के संदंर्भ की बात की जाय तो आज इसकी बाजार कीमत लगभग 10 से 12 बिलियन डालर लगायी जा रही है, इसका मलतब हुआ कि आज उज्बेकिस्तान या पराग्वे जैसे देशों की कुल जीडीपी से भी ज्यादा या नेपाल जैसे देश के जीडीपी से दोगुना के बराबर है। इतिहास के साथ आज यह अर्थव्यवस्था का विषय भी बना हुआ है जिसमे पिछे कि इतने सारे देश दावा कर रहे है।



कोहिनूर पर क्या है दावा

कोहिनूर पर कई बार कई सवाल उठे। कोहिनूर पर कई देश अपना हक बताते हैं। कोहिनूर हीरे के दावे के तौर पर आज मुख्यतः भारत, पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान आदि देश अपना हक का दावा कर रहे है। 
भारत मे चर्चा
भारत कहता है कि कोहिनूर भारत की सम्पदा है, जिसे ब्रिटिशों ने गलत तरीके से लूट लिया। वहीं ब्रिटिश सरकार कहती है कि कोहिनूर को सिख सरदारों ने उनसे संधि के तहत को तोहफे में दिया। भारत की आजादी के बाद से ही भारत ने कोहिनूर को वापस लाने की कवायद शुरू कर दी थी। 1953 में महारानी एलीजाबेथ द्वितीय के राजतिलक दौरान भी भारत द्वारा कोहिनूर की मांग की गयी, परंतु हर बार ब्रिटिश सरकार कोहिनूर पर ब्रिटिश का हक बताकर भारत की सभी दलील खारिज करती जाती है। सन 2000 में भी कई बार भारतीय सदन ने कोहिनूर पर भारतीय दावा करते हुए ब्रिटिश सरकार पर आरोप लगाया, कि कोहिनूर को ब्रिटिश सरकार ने अनैतिक रूप से प्राप्त किया है। अप्रैल 2016 में भारत की ओर से ब्रिटेन पर कोहिनूर लौटने की याचिका दायर की गई. इस पर भारतीय संस्कृति मंत्री श्री महेश शर्मा ने कहा है कि “कोहिनूर के मुद्दे को जल्द से जल्द हल किया जाएगा”। कोहिनूर को लेकर भारत के कुछ लोगों का मानना है कि कोहिनूर को भारत सरकार ने ही ब्रिटिश राज्य को तोहफे स्वरूप भेंट किया गया। सूप्रीम कोर्ट में कोहिनूर पर याचिका के दौरान भारतीय वकील ने कहा कि ब्रिटिश सरकार ने सिखों से जबरदस्ती कोहिनूर नहीं छिना है, बल्कि सिखों ने स्वेच्छा से युद्ध के मुआवजे के तौर पर ब्रिटिश सरकार को कोहिनूर भेंट किया था। कोहिनूर मुद्दा अभी भी काफी चर्चे में है। एक ओर जहाँ भारत उसे वापिस लाने की कवायद कर रहा है, वहीं ब्रिटिश सरकार भी इसे नहीं लौटाने की जिद पर अड़ी है। दोनों ही देश की सरकारें सही फैसले के लिए हल ढूंढ रही है

पाकिस्तान
कोहिनूर पर हक के लिए भारत के साथ साथ पाकिस्तान भी सूची में शामिल है। 1976 में पाकिस्तान ने कोहिनूर पर अपना हक बताते हुए ब्रिटिश सरकार से कोहिनूर, पाकिस्तान को लौटाने की बात कही. इसके जवाब में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री जेम्स केलेघन ने तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को खत लिखा की “कोहिनूर को 1849 में लाहौर की शांति संधि के तहत महाराजा दलीप सिंह ने ब्रिटिश सरकार को दिया है. और इसलिए ब्रिटिश महारानी कोहिनूर को पाकिस्तान को नहीं सौंप सकती”
अफगानिस्तान 
भारत के साथ साथ तालिबान के विदेशी मुद्दे के प्रवक्कता, फैज अहमद फैज ने कहा कि कोहिनूर अफगानिस्तान की संपत्ति है, और इसे जल्द से जल्द अफगानिस्तान को सौंपा जाना चाहिए. उन्होने कहा कि इतिहास बताता है कि कोहिनूर अफगानिस्तान से भारत गया और फिर भारत से ब्रिटेन, इसलिए अफगानिस्तान कोहिनूर का प्रबल दावेदार है।


ब्रिटेन का बयान 

कोहिनूर को लौटाने के जवाब में जुलाई 2010 में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड केमरून ने कहा कि “अगर ब्रिटिश सरकार प्रत्येक देश के दावे को सही मानते हुए अमूल्य रत्न एवं वस्तुएँ लौटाती है, तो कुछ ही समय में ब्रिटिश संग्रहालय अमूल्य धरोहर से खाली हो जाएगा.” फरवरी 2013 में भारतीय दौरे पर उन्होने कोहिनूर को लौटाने से साफ इंकार कर दिया।

कोहिनूर कई देश का सफर करते हुए कई राजा महाराजाओं के हाथों से होते हुए अंततः वर्तमान में लंदन के टावर में सुरक्षित रखा गया है।



आइये जानते है क्या है कोहिनूर, क्या है इसका इतिहास 


कोहिनूर से जुड़ा एक अंधविश्वास या विश्वास

वैसे जवाहरातो को लेकर भांति-भांति के कथाए एव मान्यताए है जो कि, कोहिनूर हीरा के साथ भी जुड़ा हुआ है। कोहिनूर से जुड़ी मान्यता के अनुसार यह हीरा पुरूषों के लिए एक दुखद घटना या अशुभ है यहा तक की मृत्यु का कारण भी बन सकता है, महिलाओं के लिए शुभ एवं सौभाग्य लेकर आता है। अन्य मान्यता के अनुसार, कोहिनूर का स्वामी संसार पर राज्य करने वाला बना।


कोहिनूर हीरा अर्थ महत्व

कोहिनूर का अर्थ है- आभा या रोशनी का पर्वत। हीरा एक प्रकार का रत्न है, जो विभिन्न नगों एवं रत्नों में सबसे अद्भुत रत्न है। अभी के समय में कोहिनूर हीरा एक 105.6 कैरेट (21.6 ग्राम) वजन का रह गया है जबकि मूल हीरा 793 कैरेट वजन का था। सभी प्रकार के हीरों में “कोहिनूर” सबसे प्रसिद्ध, पुराना एवं महंगा हीरा है, जो किसी समय विश्व का सबसे बड़ा ज्ञात हीरा रह चुका है। इसकी शुरुआत भारत आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले की कोल्लूर खदान (गोलकुंडा की खान ) से माना जाता है, जो कि सन 1730 ई0 तक यह विश्व का एकमात्र हीरा उत्पादक क्षेत्र  था। इसके बाद ब्राजील अफ्रीका और आॅस्ट्रेलिया में हीरे की खानों की खोज हुई। उस समय गोलकुण्डा हीरा, अपने आप में  एक प्रख्यात नाम था क्योंकि यह खान सिर्फ हीरा खदानों के लिए ही प्रसिद्ध था, यहा से निकले हीरे अत्यधिक श्वेत, स्पष्टता व उच्च कोटि की पारदर्शिता के लिये जाने जाते थे। यह अत्यधिक दुर्लभ, एवं कीमती होते हैं। वहा से निकला कोहिनूर हीरा मध्य भारतीय इतिहास से जुडा एक अद्भूत किस्सा है क्योंकि यह हर सुल्तान या बादशाह के सर के ताज की शोभा तो बढ़ाता ही था, बल्कि इसे पाने के लिए युद्ध तक हुए थे। वर्तमान समय में वही हीरा भारत से बाहर ब्रिटेन में है जिस पर कई देश अपना होने का दावा करते हैं। इसकी प्राप्ति भारत में ही हुई मगर कुछ विदेशी आक्रमणकारियां द्वारा यह भारत से बाहर भी ले जाया गया, जैसे  कई मुगल व फारसी शासकों से होता हुआ, अन्ततः ब्रिटिश शासन के अधिकार में लिया गया, व उनके खजाने में तब शामिल हो गया, जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री, बेंजामिन डिजराएली ने महारानी विक्टोरिया को 1877 ई0 में भारत की सम्राज्ञी घोषित किया। महारानी विक्टोरिया इसे किसी सुअवसर पर या किसी खास मौके पर ही पहनती थी। उन्होने अपनी वसीयत में कोहिनूर के उत्तराधिकारी के बारे में लिखा है, कि “कोहिनूर को केवल महारानियों द्वारा ही पहना जाना चाहिए”। “अगर किसी समय कोई पुरुष राज्य का शासक बनता है तो, उसकी पत्नी को कोहिनूर पहनने का अधिकार होगा”। महारानी विक्टोरिया की मृत्यु के बाद कोहिनूर को महारानी के ताज में जड़ दिया गया। यह ताज के ब्रिटेन की महारानियों द्वारा पहना जाता है। इसका वजन लगभग 105.6 केरेट है। कोहिनूर इंग्लैंड के राजसी परिवार में महारानी के ताज में लगभग 2000 हीरों के साथ जड़ा गया है।

कोहिनूर को महारानी विक्टोरिया के बाद महारानी एलेक्सजेंडर, उसके बाद महारानी मेरी तथा एलीजाबेथ द्वारा ही पहना गया।

मगर हाल ही में कोहिनूर हीरा और उसके स्वामित्व को काफी चर्चा हुई है। इस पर समय समय पर कई देशों मे अपना हक का दावा किया है।

कोहिनूर हीरे का इतिहास 

कोहिनूर की उत्पत्ति और मान्यताओ के अनुसार अनेक मत एवं धारणाएं है। एक धारणा के अनुसार कोहिनूर प्राचीन मंें स्यमंतक मणि के नाम से प्रसिद्ध था। पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग यह मणी जाम्वंत नाम के राजा के पास थी जिनकी पुत्री से भगवान श्रीकृष्ण ने विवाह करने के बाद यह भगवान कृष्ण को मिल गया। एक अन्य कथा के अनुसार कोहिनूर हीरा, लगभग 3200 ई0पू0 नदी की तली में मिला था।

कुछ इतिहासकार मानते है दिल्ली सल्तनत के उत्थान के समय में खिलजी वंश के सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी दक्षिण की ओर अपना विजय अभियान बढ़ाया उसके सेनापति मलिक कफूर ने 1310 ई0 आध्र के काकतीय वंश को हराकर वहा भारी लूटपाट की और बहुमूल्य हीरे जवाहरात अपने साथ दिल्ली सल्तनत ले आया उन सबसे यह बेसकिमती हीरा कोहिनूर भी था। हालांकि यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि यह काकतीय वंश के राजाओ के पास कब और कहा से आया। दिल्ली सल्तनत पर क्योंकि काफी लंबे समय तक और विभिन्न सुल्तानों व वंशों ने राज किया था, अतः यह हीरा सुल्तान दर सुल्तान उनके सिंहासन को सजाता रहा हालांकि इसका कोई लिखित विवरण तो नही मिलता है। यह किस प्रकार 1310 ई0 से 1526 ई0 तक तथा किन किन शासकों के पास रहा यह स्पष्ट नही है। इसका पहला लिखित प्रमाण 1526 ई0 में मुगल बादशाह बाबर द्वारा किया गया मिलता है। बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में अनुमान लगाते हुए लिखा है, कि यह हीरा 1294 ई0 में मालवा के एक राजा के पास था। हालांकि बाबर उस राजा को स्पष्ट विवरण तो नही कर पाया। बाबर को यह हीरा बेशकिमती और आकर्षक लगा, बाबर ने इसकी अहमियत बताते हुए लिखा है कि यह हीरा इतना बेसकिमती या मंहगा है कि यदि इसी बेंचे तो पूरे संसार को दो दिनों तक पेट भर सकता है। बाबरनामा में लिखा गया है कि कैसे यह हीरा विभिन्न शासको से होता हुआ मुगल शासन में आया। कुछ इतिहासकारो का मानना है यह साबित करना काफी कठिन है कि बाबार द्वारा उल्लेखित हीरा ही आज का कोहिनूर है। 
जैसे कि इस हीरा का पहली बार जिक्र मुगल साहित्य (पहले बाबरनामा और बाद में शाहजहानामां में) में किया गया है। कि यह दक्षिण भारत  से दिल्ली सल्तनत लाया गया। किन्तु उन दिनों दिल्ली में काफी उठापटक चल रही थी, जिसके चलते यह हीरा, ग्वालियर के कछवाहा शासकों के हाथ लग गया, कछवाहों पर तोमर राजाओं के हमले से यह तोमरों के पास पहुंचा। अंतिम तोमर शासक विक्रमादित्य को सिकन्दर लोदी ने हराया, व बंदी बना लिया। मुगलों की लोदियों पर विजय और बाबर के पुत्र हुमांयू ने ग्वालियर के राजघराने के लोदियों द्वारा जुटी संपत्ति वापस दिलवा। हुमायुं की इस भलाई के बदले विक्रमादित्य ने अपना एक बहुमूल्य हीरा, जो शायद कोहिनूर ही था, हुमायुं को साभार दे दिया। परन्तु हुमायुं का जीवन अति दुर्भाग्यपूर्ण रहा। वह शेरशाह सूरी से हार गया। शेरशाह सूरी की भी कलिंजर अभियान के दौरान मौत हो गयी। किन्तु बाद में दिल्ली को पुनः हुमांयू द्वारा विजित करने के बाद यह हीरा फिर से हुमांयू के पास आ गया।हुमायुं के बाद उसका पुत्र अकबर जब बादशाह बना तो उसने इस हीरे को अपने पास रखने के वजाय खजाने में रखवा दिया। जिसे जहांगीर ने अपने दरबार मे रखवाया। जहांगीर के पुत्र शाहजहां ने कोहिनूर को अपने प्रसिद्ध मयूर-सिंहासन (तख्ते-ताउस) में जड़वाया। कोहिनूर मुगलो के पास 1739 ई0 तक ही रहा क्योंकि 1739 ई0 में ईरानी शासक नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण कर भारी लूट-पाट की और तख्ते-ताउस को ले जाया गया साथ ही कोहिनूर भी। कोहिनूर लिखित वर्णन, नादिर शाह ने भी किया है जिसमे उसकी रानी ने इसे एक नामुमकिन किस्से से जोडकर इसकी महत्ता बताई।
कोहिनूर को देखने के लिए नादिर शाह लंबे समय तक जीवित नहीं रह सका। 19 जून 1747 में राजनीतिक लड़ाई के चलते नादिर शाह की हत्या कर दी गयी और इस बेशकीमती कोहिनूर को जनरल अहमद शाह दुर्रानी ने अपने कब्जे में ले लिया। फिर अहमद शाह दुर्रानी के वंशज शाह शुजा दुर्रानी, जो कि अफगान का एक पदच्युत शासक था कोहिनूर को 1813 में वापस भारत के पंजाब ले कर आया। इसे उसने अपने हाथ के कड़े में जड़वा कर कई दिनों तक पहना रखा। फिर आखिर में शुजा दुर्रानी ने कोहिनूर को सिक्ख समुदाय के संस्थापक राजा रंजीत सिंह को सौंप दिया। इस बेशकीमती तोहफे के बदले में राजा रंजीत सिंह ने शाह शुजा दुर्रानी को अफगानिस्तान से लड़ने एवं राजगद्दी वापस लाने में मदद की।
महाराज रंजीत सिंह के एक प्रिय घोड़े का नाम भी कोहिनूर थां राजा रंजीत सिंह ने अपनी वसीयत में कोहिनूर हीरे को उनकी मृत्यु के बाद जगन्नाथपूरी (उड़ीसा, भारत) के मंदिर में देने की बात कही, परंतु ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनकी वसीयत नहीं मानी। 29 मार्च 1849 को द्वितीय एंग्लो सिक्ख युद्ध और बाद में संधि के तहत महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र और उत्तराधिकारी दलीप सिंह ने यह हीरा ईस्ट इंडिया कंपनी को सौप दिया। अंततः जुलाई 1850 में इस बेशकीमती, जगमगाते हुए हीरे को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के अधीन सौंप दिया गया। कुछ इतिहासकार इसी एक षडयत्र मानते है जो भी हो तब से आज तक यह हीरा ब्रिटेन की महारानी में मुकुट की शोभा बना हुआ है और दूसरी तरफ भारत जिसकी यह खुद की अमानत है आज भी ब्रिटेन को इस कीमती हीरे को वापस लौटाने की मांग कर रहा है। मांग भी क्यू न करे यह मात्र एक हीरा नही यह हमारे देश के गौरवमयी इतिहास की एक गाथा है।

1851 ई0 में, लंदन के हाइड पार्क में एक विशाल प्रदर्शनी में, ब्रिटिश जनता को यह हीरा दिखाया गया।



कैसे पहुचा कोहिनूर ब्रिटेन-

कोहिनूर हीरा भारत में राजा रंजीत सिंह की निगरानी में कई दिनों तक सुरक्षित रहा। परंतु 1849 में ब्रिटिश फोर्स द्वारा पंजाब जीतने पर सिक्ख शासक रंजीत सिंह की सारी संपत्ति को ब्रिटिश सरकार ने अपने कब्जे में कर लिया. इसके बाद बेशकीमती कोहिनूर को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके खजाने में रख लिया तथा बाकी सिक्ख शासक की संपत्ति को लड़ाई के मुआवजे के तौर पर रख लिया गया। फिर इस कोहिनूर को जहाजी यात्रा से ब्रिटेन लाया गया. ऐसा माना जाता है कि कोहिनूर को ले जाते वक्त इसकी देख रेख एवं सुरक्षा करने वाले के हाथों यह बेशकीमती हीरा घूम गया, परंतु कुछ ही दिनों बाद उसके नौकर द्वारा कोहिनूर लौटाए जाने का वाक्या प्रचलित है. अंततः जुलाई 1850 में इस बेशकीमती, जगमगाते हुए हीरे को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के अधीन सौंप दिया गया.


क्यू काटना पड़ा कोहिनूर हीरा


प्रिंस अल्बर्ट इस हीरे को नया रूप देना चाह रहा था इसके लिए उसने डायमंड कटर की खोज की और नीदरलैंड कैंटरए जो कि एक प्रख्यात हीरा काटने वाला कलाकार था को ढूढा और हीरे को काटने का मिशन दियाए जिसने इसे काटने का मुश्किल काम शुरू किया।  कैंटर ने हीरे पर 38 दिन काम किया। हीरे को एक अंडाकार आकार में काटा गया था और वजन अपने वर्तमान स्वरूप में कम हो गया है अभी यह 105.6 कैरेट का वजन है। जबकि मूल रूप में 796 कैरेट वजन का था।नया रूप आने के बाद प्रिंस अल्बर्ट कटिंग के काम से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि हीरा पहले जितना चमकता नहीं था।

No comments:

Post a Comment

Please Do not enter nay spam link on comment

Rich Dad Poor Dad : What The Rich Teach Their Kids About Money