आपातकाल यानी संकटकाल या तात्कालीन आवश्यकता का काल।
भारतीय संविधान के भाग 18 में अंकित ये नाम आजकल कुछ मीडिया हाउसांे तथा कुछ विद्वानों द्वारा बार-बार चर्चा का विषय बन रहा है इसका कारण यह है कि भारत जैसे देश में जहां वैसे ही अर्थव्यवस्थता की गति मानों रूकी सी हुई है ऐसे मे कोरोना जैसी महामारी के प्रकोप से निपटने के लिए किये जा रहे कुछ सुरक्षा उपायों को लेकर जो लाॅकडाउन या कफ्र्यू लगाया गया है उसे देखकर लोगों के मन में वित्तीय आपातकाल को जानने की जिज्ञासा बढ़ी है। यह सब 24 मार्च, 2020 को कुछ समाचारों तथा मीडिया हाउसो द्वारा उठाए गए संदेह में कहा गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय देश में वित्तीय आपातकाल लागू करवाना चाहता है। इसका दूसरा पहलू ये भी था कि हमारे देश सारे व्यापारिक साझेदार देश जिनसे हमारे आयात होते हो या निर्यात सभी जगह आंशिक या पूर्ण लाॅकडाउन चल रहा है।
यहा हम देखते है कि कितने प्रकार के आपताकाल होते है और वित्तीय आपातकाल लागू होने की दशा में क्या होगा। वैसे भी स्वतंत्र भारत के इतिहास में अभी तक वित्तीय आपातकाल नहीं लगाया गया है। अवश्य ऐसे हालात 1991-92 में बने जरूर थे मगर तत्कालीन सरकार ने उस परिस्थिति को सुलझा लिया था।
भारत संविधान में आपातकाल का उपबन्ध जर्मनी के वीमर संविधान से लिया गया है। मुख्यतः भारत में तीन प्रकार के आपात उपबन्ध किये गये है।
1- राष्ट्रीय आपातकाल अनुच्छेद- 352
यह अति गंभीर मामलो मे लगाया जाता है जैसे आन्तरिक अशान्ति (विद्रोह), युद्ध या बाह्य आक्रमण के समय, जो अभी तक तीन बार (वर्ष 1962,1971,1975) देश में लग चुका है। यह छः महीनों तक प्रवर्तन मे रह सकता है और जरूरत पढ़ने पर संसद द्वारा आगे बढ़ाया भी जा सकता है।
दूसरा है राष्ट्रपति शासन- इसका वर्णन भारतीय संविधान में अनुच्छेद- 356 मे किया गया है। यह आपातकाल तब लगाया जाता है जब किसी राज्य या राज्यों का संवैधानिक तंत्र विफल हो जाय या यूं कहे कि उस राज्य में संविधान के अनुरूप काम न हो रहा हो। यह आपातकाल भी शुरू में दो महीने के लिये प्रवर्तन में रहता है परन्तु आवश्यकतानुसार और आगे बढ़ाने के लिए दो महीने के भीतर संसद से अनुमोदन आवश्यक है। तथा अगले 6 महीनों तक के लिए बढ़ाया जा सकता है इस प्रकार एक बार में राष्ट्रपति शासन आवश्यकतानुसार कुल मिलाकर 3 साल के लिए बढ़ाया जा सकता है। राष्ट्रपति शासन को ही सर्वाधिक बार राजनितिक दुरूपयोग होने का आरोप लगा है सत्तारूढ़ पार्टी अपने फायदे के लिए समय इसका मिलने पर राजनीतिक दुरूपयोग करती आ रही है।
तीसरा है जिसकी हाल फिलहाल में चर्चा होने लगी है वित्तीय आपातकाल जिसका वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 में किया गया हैं। वित्तीय आपातकाल संयुक्त राज्य अमेरिका के नेशनल रिकवरी एक्ट 1933 के तर्ज पर आधारित है। यह आपातकाल तब प्रवर्तन मे आता है जब राष्ट्रपति को लगता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है या हो सकती है जिससे देश के वित्तीय स्थायित्व में संकट आ सकता है। इस आपातकाल को भी अन्य दोनों आपातकाल की भांति राष्टपति के द्वारा ही प्रवर्तन मे लाया जाता है। हमारे देश में जब भी राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों की बात की होती है लगभग सभी मामलों उसका तात्पर्य देश का मंत्रीमंडल ही होता है क्योंकि सारे कार्य मंत्रीमंडल द्वारा ही किये जाते है। यह आपातकाल भी शुरू में संसद के अनुमोदन के बिना दो महीनों के लिए प्रवर्तन में रहती है अगर आगे जारी रखना है तो दो महीने की अवधि के भीतर संसद से पास होना आवश्यक है। यदि किसी कारणवश ऐसी स्थिति आती है कि दो महीनो के भीतर लोकसभा का विघटन हो जाय तो उस स्थिति में नयी लोकसभा की पहली बैठक से 30 दिनों के अंदर इसे पारित करना होता है। पारित होते ही वित्तीय आपातकाल तब तक जारी रहेगा जब तक राष्ट्रपति इसे हटाने की घोषणा नहीं करते। निष्कासन को संसदीय स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
क्या हो सकता है वित्तीय आपातकाल का प्रभाव
यदि संसद द्वारा वित्तीय आपातकाल को मंजूरी दी जाती है, तो केंद्र सरकार देश के वित्तीय मामलों पर पूर्ण नियंत्रण रखती है। केंद्र सरकार वित्तीय मामलों पर राज्य सरकारों को निर्देश जारी कर सकता है। यदि राज्य द्वारा कुछ धन विधेयक पारित किया जाता है, यहा तक कि राज्य के बजट को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजने का भी प्रावधान है। जैसा कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है। संक्षेप में, केंद्र सरकार इस बात को मंजूरी देगी कि किसी राज्य को किस तरह का विधेयक पारित करने की अनुमति है, और वह क्या नहीं कर सकता है। यह सरकार को पूरे देश के सभी सरकारी कर्मचारियों के वेतन को कम करने की शक्तियां भी दे सकती है। इसका मतलब है राज्य व संघ के अधीन सेवा करने वाले (जिसके अंतर्गत उच्चतम व उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी शामिल है) सभी या किसी वर्ग के व्यक्तिों के वेतन व भत्तों में कमी की जा सकती है। इस आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
वित्तीय आपातकाल की कुछ खामियां
वित्तीय आपातकाल में स्पष्ट कहा गया है कि यदि देश में ‘वित्तीय अस्थिरता’ हो तो, जो कि अपने आप में कोई स्पष्ट शब्द नही है। यह वित्तीय आपातकाल से जुड़े कानून में एक बड़ी खामी है कि अन्य कानूनों के विपरीत इसकी कोई विशिष्टता नहीं है। और सरकारें इसे अपनी इच्छा से मोड़ सकती हैं। भारत का संघीय ढांचा केंद्र की ओर सत्ता परिवर्तन के साथ है। हालाँकि, यह कानून राज्य की निर्वाचित सरकारों की स्वायत्तता में बाधा है। वहाँ के सर्वोत्तम हित के बारे में निर्णय लेने की उनकी शक्तियाँ रूक जाती हैं। इसके अलावा, केंद्र सरकार भारत में अर्थव्यवस्था का प्रबंधन करती है।
विशलेषण
1930 के महामंदी के खतरे से निपटने के संयुक्त राज्य अमेरिका ने नेशनल रिकवरी एक्ट 1933 के तहत इस तरह के प्रावधान किया था। वित्तीय आपातकाल घोषित करने या ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होना किसी भी देश के लिए एक बड़ा धक्का है। भारत जैसे देश के लिए जो कि दुनिया में तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है ऐसे संकेत चिंताजनक है। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और पीपीपी आधार पर तो हम तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है। ऐसे में निवेश में बढ़ावा लाने के लिए हमारी अर्थव्यवस्था का नियमित रूप से अच्छा करना होगा। अभी स्थिति यह है कि दुनिया कि सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश भी लाॅकडाउन के दौर से गुजर रहे है ऐसे में उनके साथ हमारा व्यापार चाहे वो आयात हो या निर्यात पूरा बंद हुआ है चाहे 21 दिनों के लिए क्यो न हो भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका असर जरूर पढ़ेगा। मगर देखना होगा है सरकार ने इससे निपटने को लेकर क्या तैयारियां की है। फिलहाल हमारा एक कर्तव्य यह है कि हम एक सच्चे देशभक्त नागरिक की तरह अपनी सरकार, देश व खुद का ध्यान रखे और कोशिश करे कि ले लाॅकडाउन मात्र 21 दिन ही रहे जो कि हमारे सहयोग के बिना नही हो सकता। खुद को और समाज को बचाने के लिए एकांतवास में रहे और खुद का ध्यान रखे।
टाॅप 25 देशों के साथ भारत का आयात निर्यात (अप्रैल 2019 - जनवरी 2020)
भारतीय संविधान के भाग 18 में अंकित ये नाम आजकल कुछ मीडिया हाउसांे तथा कुछ विद्वानों द्वारा बार-बार चर्चा का विषय बन रहा है इसका कारण यह है कि भारत जैसे देश में जहां वैसे ही अर्थव्यवस्थता की गति मानों रूकी सी हुई है ऐसे मे कोरोना जैसी महामारी के प्रकोप से निपटने के लिए किये जा रहे कुछ सुरक्षा उपायों को लेकर जो लाॅकडाउन या कफ्र्यू लगाया गया है उसे देखकर लोगों के मन में वित्तीय आपातकाल को जानने की जिज्ञासा बढ़ी है। यह सब 24 मार्च, 2020 को कुछ समाचारों तथा मीडिया हाउसो द्वारा उठाए गए संदेह में कहा गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय देश में वित्तीय आपातकाल लागू करवाना चाहता है। इसका दूसरा पहलू ये भी था कि हमारे देश सारे व्यापारिक साझेदार देश जिनसे हमारे आयात होते हो या निर्यात सभी जगह आंशिक या पूर्ण लाॅकडाउन चल रहा है।
यहा हम देखते है कि कितने प्रकार के आपताकाल होते है और वित्तीय आपातकाल लागू होने की दशा में क्या होगा। वैसे भी स्वतंत्र भारत के इतिहास में अभी तक वित्तीय आपातकाल नहीं लगाया गया है। अवश्य ऐसे हालात 1991-92 में बने जरूर थे मगर तत्कालीन सरकार ने उस परिस्थिति को सुलझा लिया था।
भारत संविधान में आपातकाल का उपबन्ध जर्मनी के वीमर संविधान से लिया गया है। मुख्यतः भारत में तीन प्रकार के आपात उपबन्ध किये गये है।
1- राष्ट्रीय आपातकाल अनुच्छेद- 352
यह अति गंभीर मामलो मे लगाया जाता है जैसे आन्तरिक अशान्ति (विद्रोह), युद्ध या बाह्य आक्रमण के समय, जो अभी तक तीन बार (वर्ष 1962,1971,1975) देश में लग चुका है। यह छः महीनों तक प्रवर्तन मे रह सकता है और जरूरत पढ़ने पर संसद द्वारा आगे बढ़ाया भी जा सकता है।
दूसरा है राष्ट्रपति शासन- इसका वर्णन भारतीय संविधान में अनुच्छेद- 356 मे किया गया है। यह आपातकाल तब लगाया जाता है जब किसी राज्य या राज्यों का संवैधानिक तंत्र विफल हो जाय या यूं कहे कि उस राज्य में संविधान के अनुरूप काम न हो रहा हो। यह आपातकाल भी शुरू में दो महीने के लिये प्रवर्तन में रहता है परन्तु आवश्यकतानुसार और आगे बढ़ाने के लिए दो महीने के भीतर संसद से अनुमोदन आवश्यक है। तथा अगले 6 महीनों तक के लिए बढ़ाया जा सकता है इस प्रकार एक बार में राष्ट्रपति शासन आवश्यकतानुसार कुल मिलाकर 3 साल के लिए बढ़ाया जा सकता है। राष्ट्रपति शासन को ही सर्वाधिक बार राजनितिक दुरूपयोग होने का आरोप लगा है सत्तारूढ़ पार्टी अपने फायदे के लिए समय इसका मिलने पर राजनीतिक दुरूपयोग करती आ रही है।
तीसरा है जिसकी हाल फिलहाल में चर्चा होने लगी है वित्तीय आपातकाल जिसका वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 में किया गया हैं। वित्तीय आपातकाल संयुक्त राज्य अमेरिका के नेशनल रिकवरी एक्ट 1933 के तर्ज पर आधारित है। यह आपातकाल तब प्रवर्तन मे आता है जब राष्ट्रपति को लगता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है या हो सकती है जिससे देश के वित्तीय स्थायित्व में संकट आ सकता है। इस आपातकाल को भी अन्य दोनों आपातकाल की भांति राष्टपति के द्वारा ही प्रवर्तन मे लाया जाता है। हमारे देश में जब भी राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों की बात की होती है लगभग सभी मामलों उसका तात्पर्य देश का मंत्रीमंडल ही होता है क्योंकि सारे कार्य मंत्रीमंडल द्वारा ही किये जाते है। यह आपातकाल भी शुरू में संसद के अनुमोदन के बिना दो महीनों के लिए प्रवर्तन में रहती है अगर आगे जारी रखना है तो दो महीने की अवधि के भीतर संसद से पास होना आवश्यक है। यदि किसी कारणवश ऐसी स्थिति आती है कि दो महीनो के भीतर लोकसभा का विघटन हो जाय तो उस स्थिति में नयी लोकसभा की पहली बैठक से 30 दिनों के अंदर इसे पारित करना होता है। पारित होते ही वित्तीय आपातकाल तब तक जारी रहेगा जब तक राष्ट्रपति इसे हटाने की घोषणा नहीं करते। निष्कासन को संसदीय स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
क्या हो सकता है वित्तीय आपातकाल का प्रभाव
Corona Virus Impect |
यदि संसद द्वारा वित्तीय आपातकाल को मंजूरी दी जाती है, तो केंद्र सरकार देश के वित्तीय मामलों पर पूर्ण नियंत्रण रखती है। केंद्र सरकार वित्तीय मामलों पर राज्य सरकारों को निर्देश जारी कर सकता है। यदि राज्य द्वारा कुछ धन विधेयक पारित किया जाता है, यहा तक कि राज्य के बजट को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजने का भी प्रावधान है। जैसा कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है। संक्षेप में, केंद्र सरकार इस बात को मंजूरी देगी कि किसी राज्य को किस तरह का विधेयक पारित करने की अनुमति है, और वह क्या नहीं कर सकता है। यह सरकार को पूरे देश के सभी सरकारी कर्मचारियों के वेतन को कम करने की शक्तियां भी दे सकती है। इसका मतलब है राज्य व संघ के अधीन सेवा करने वाले (जिसके अंतर्गत उच्चतम व उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी शामिल है) सभी या किसी वर्ग के व्यक्तिों के वेतन व भत्तों में कमी की जा सकती है। इस आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
वित्तीय आपातकाल की कुछ खामियां
वित्तीय आपातकाल में स्पष्ट कहा गया है कि यदि देश में ‘वित्तीय अस्थिरता’ हो तो, जो कि अपने आप में कोई स्पष्ट शब्द नही है। यह वित्तीय आपातकाल से जुड़े कानून में एक बड़ी खामी है कि अन्य कानूनों के विपरीत इसकी कोई विशिष्टता नहीं है। और सरकारें इसे अपनी इच्छा से मोड़ सकती हैं। भारत का संघीय ढांचा केंद्र की ओर सत्ता परिवर्तन के साथ है। हालाँकि, यह कानून राज्य की निर्वाचित सरकारों की स्वायत्तता में बाधा है। वहाँ के सर्वोत्तम हित के बारे में निर्णय लेने की उनकी शक्तियाँ रूक जाती हैं। इसके अलावा, केंद्र सरकार भारत में अर्थव्यवस्था का प्रबंधन करती है।
विशलेषण
1930 के महामंदी के खतरे से निपटने के संयुक्त राज्य अमेरिका ने नेशनल रिकवरी एक्ट 1933 के तहत इस तरह के प्रावधान किया था। वित्तीय आपातकाल घोषित करने या ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होना किसी भी देश के लिए एक बड़ा धक्का है। भारत जैसे देश के लिए जो कि दुनिया में तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है ऐसे संकेत चिंताजनक है। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और पीपीपी आधार पर तो हम तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है। ऐसे में निवेश में बढ़ावा लाने के लिए हमारी अर्थव्यवस्था का नियमित रूप से अच्छा करना होगा। अभी स्थिति यह है कि दुनिया कि सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश भी लाॅकडाउन के दौर से गुजर रहे है ऐसे में उनके साथ हमारा व्यापार चाहे वो आयात हो या निर्यात पूरा बंद हुआ है चाहे 21 दिनों के लिए क्यो न हो भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका असर जरूर पढ़ेगा। मगर देखना होगा है सरकार ने इससे निपटने को लेकर क्या तैयारियां की है। फिलहाल हमारा एक कर्तव्य यह है कि हम एक सच्चे देशभक्त नागरिक की तरह अपनी सरकार, देश व खुद का ध्यान रखे और कोशिश करे कि ले लाॅकडाउन मात्र 21 दिन ही रहे जो कि हमारे सहयोग के बिना नही हो सकता। खुद को और समाज को बचाने के लिए एकांतवास में रहे और खुद का ध्यान रखे।
टाॅप 25 देशों के साथ भारत का आयात निर्यात (अप्रैल 2019 - जनवरी 2020)
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