क्या है महामारी
महामारी घोषित करते समय एक बात और ध्यान रखी जाती है। किसी प्रभावित देश से आने वाले यात्री की वजह से अगर कुछ देशों में छिटपुट मामले सामने आते हैं तो उसको महामारी घोषित नहीं किया जाता है। जब कई देशों में स्थानीय स्तर पर आपस में लोगों के बीच बीमारी लगातार फैलने लगती है तब ही उसको महामारी घोषित किया जाता है। जैसा कि कोरोना वायरस को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि इसे महामारी घोषित करने में इतना समय क्यों लगा तो कोरोना वायरस के साथ भी ऐसा ही हुआ। शुरुआत में स्थानीय स्तर पर बीमारी के फैलने के ज्यादा मामले सामने नहीं आए थे। अधिकांशतः मौसमी महामारी अधिक घातक होती है।
अगर बात इन्फ्जूएंजा महामारी के करे तो इन्फ्लूएंजा महामारी के कुछ पहलू मौसमी इन्फ्लूएंजा के समान दिखाई देते हैं जबकि अन्य विशेषताएं काफी भिन्न हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, मौसमी और इन्फ्लूएंजा दोनों सभी आयु समूहों में संक्रमण का कारण बन सकते हैं, और अधिकांश मामलों में स्व-सीमित बीमारी होगी, जिसमें व्यक्ति बिना उपचार के पूरी तरह से ठीक हो जाता है। हालांकि, विशिष्ट मौसमी इन्फ्लूएंजा बुजुर्गों में से अधिकांश की मृत्यु का कारण बनता है, जबकि अन्य गंभीर मामले विभिन्न प्रकार की चिकित्सा स्थितियों वाले लोगों में सबसे अधिक होते हैं।
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महामारी (पैनडेमिक ) और स्थानीय महामारी (एपिडेमिक) में फर्क
वह कोई बीमारी जो दुनिया भर में तेजी से फैल रही हो और जिस पर रोक लगाना नामुमकिन हो रहा हो, उसे पैनडेमिक या महामारी कहते हैं जबकि एपिडेमिक किसी एक देश, राज्य, क्षेत्र या सीमा तक सीमित होती है। जैसे साल 1918 से 1920 तक फैले स्पैनिश फ्लू को महामारी घोषित किया गया था क्योंकि इससे कई देशों में बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हुए थे। इससे करोड़ों मौत हो गई थी। वहीं 2014-15 में फैले इबोला व 2002 में फैले सार्स को एपिडेमिक घोषित किया गया क्योंकि यह बीमारी कुछ क्षेत्र विशेष तक ही सीमित थी।
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महामारी घोषित होने का क्या मतलब है?
जब किसी बीमारी को महामारी घोषित कर दिया जाता है तो इसका मतलब बीमारी लोगों के बीच आपस में एक-दूसरे में फैलेगी। यह सरकार के लिए एक तरह अलर्ट का काम करता है। सरकार और हेल्थ सिस्टम को बीमारी से निपटने के लिए विशेष तैयारी करनी पड़ती है।
आने वाले समय में महामारी के खतरे
जितने भी महामारिया दुनिया में हुई हो वे कही न कही जानवरो व इंसानो के बीच हुए नजदिकियों का एक परिणाम है। इसका यह मतलब नही है कि हमे जानवरो से दूरी बनाये रखे पर ये भी सच है कि जितने भी वायरस है इनके वाहक या कारक मे जानवरो का अहम रोल है जो कि एक विशेष तरह से फैलता है जैसे जानवरो का मांस व उनके काटने या मल आदि से।पहले के मुकाबले आज के समय में लोगों का एक-जगह से दूसरी जगह खूब आना-जाना होता है। इससे वायरस को फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
संचार के तेज साधन की वजह से बीमारी की सूचना तेजी से फैल जाती है। इससे लोगों में डर पैदा होता है। डर की हालत में लोग एक जगह से बचने के लिए दूसरी जगह जा सकते हैं जिनके साथ वायरस दूसरी जगह भी पहुंच सकता है।
कुल मिलाकर मौजूदा समय में बीमारी को व्यापक पैमाने पर दुनिया भर में फैलने का खतरा ज्यादा है।
इतिहास में कुछ महामारियों
एथेंस का प्लेग, 430 से 426 ई.पू. पेलोपोनेसियन युद्ध के दौरान, टाइफाइड बुखार ने एथेनियन सैनिकों की एक चैथाई और चार साल के लिए आबादी का एक चैथाई हिस्सा मार दिया। प्लेग का सटीक कारण कई वर्षों से अज्ञात था। जनवरी 2006 में, एथेंस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने शहर के नीचे एक सामूहिक कब्र से बरामद किए गए दांतों का विश्लेषण किया, और टाइफाइड के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया की उपस्थिति की पुष्टि की।एंटोनिन प्लेग- 165 से 180 ई0 मे इतालवी प्रायद्वीप के सैनिक जो पूर्व की ओर अभियान पर गये थे, उनके द्वारा चेचक लाया गया था जिससे संक्रमित लोगों में से एक चैथाई लोगों को मार दिया था जिनका अनुमान लगभग पचास लाख तक का लगाया जाता
ब्लैक डेथ 1331 ई0 से 1353 ई0 तक फैले ब्लैक डेथ से दुनिया भर में मौतों की कुल संख्या 80 लाख होने का अनुमान है।
तीसरा प्लेग महामारी जो कि 1855 ई0 में चीन से शुरू हुआ, और जो देखते देखते भारत में फैल गया, जिससे दुनियाभर में लगभग 1 करोड़ लोगों की मौत हो गई। इसी महामारी के दौरान, संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपना पहला प्रकोप देखा जो 1900-1904 के बीच सैन फ्रांसिस्को में फैला और जिसके कुछ लक्षण आज भी, पश्चिमी संयुक्त राज्य में पाए जाते हैं।
Spainish Flue 1914-1918 |
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