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Sunday, March 29, 2020

लाॅकडाउन मे कैसे प्रभावी हो जाती है IPC की धारा 188,269,270 और 271 का I Punishment on break Lockdown rule

लाॅकडाउन से  क्या संबंध है IPC की धारा 188,269,270 और 271 का
कोरोना वायरस संक्रमण से लड़ने और इसके प्रसार को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने अगले 14 अप्रैल तक आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत शक्तियों का उपयोग करते हुए 21 दिनों के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की है। जो कि महामारी नियंत्रण कानून 1897 के आधार पर पारित किया गया है। इसमे से अधिकांश लोगों द्वारा इसमे भरपूर सहयोग किया जा रहा है बावजूद इसके जानते है महामारी नियंत्रण कानून 1897 के अंर्तगत क्या प्रावधान किये गये है और कौन कौन सी धाराए इसमे जोड़ी गयी है मुख्यतः भारतीय दंड संहिता, 1860  के सेक्शन 188, सेक्शन 269, सेक्शन 270 और सेक्शन 271 के अनुसार इसमे प्रावधान किया गया है। 
प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन की घोषणा करने से पहले साफ किया था कि आग की तरह फैलते कोरोनावायरस से निपटना है तो कुछ ठोस कदम लेने होगे। हमें देश को 21 साल पीछे ले जाने से अच्छा है कि हम 21 दिन का लाॅकडाउन कर इस बीमारी को फैलने से बचाये है जिसके लिए सोशल डिस्टेंसिंग एक मात्र उपाय है । इसी वजह से 21 दिन के सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की गई है। यह एक प्रकार का कर्फ्यू ही है जिसके उल्लघंन या लॉकडाउन को गंभीरता ने नहीं लेने पर 2 साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना अलग से भरना पड़ सकता है। 

भारत में कोरोनावायरस से अब तक 25 लोगों की मौत हो चुकी है 945 लोग संक्रमित  हो चुके हैं. दुनियाभर में 6 लाख से ज्यादा  लोग कोरोनावायरस से पीडित हैं और लगभग 29 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। 

अभी देश के कई राज्यों जैसे उत्तराखंड, पंजाब, महाराष्ट्र और हिमाचल आदि में कोरोनावायरस से निपटने के लिए कर्फ्यू लगा दिया है। कर्फ्यू तोड़ने या महामारी नियंत्रण कानून 1897 के अनुसार सरकारी आज्ञा का पालन ना करने पर सेक्शन 188 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

भारतीय दंड संहिता, 1860 ,   की धारा 188 क्या है?

भारतीय दंड संहिता सेक्शन 188  सरकारी आदेश के पालन में बाधा और अवज्ञा के अंर्तगत आता है। इंडियन पीनल कोड (भारतीय दंड संहिता, 1860) की धारा 188 के तहत जिले के प्रशासक (डीएम), जो कि एक आईएएस अफसर होता है, उसके द्वारा लागू कानून या विधान, जिसमें जनता का हित छुपा होता है, उसकी कोई इसकी अवमानना करता है तो प्रशासन उस पर धारा 188 के तहत कार्रवाई कर सकता है।
सामान्यतः धारा 188 को न मानने वालों पर एक माह के साधारण कारावास या जुर्माना या जुर्माने के साथ कारावास की सजा दोनों हो सकते हैं. ये जुर्माना 200 रुपये तक हो सकता है. परन्तु जब, यह धारा उस उक्त लगाई जाती है कि अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा के लिए खतरे का कारण बनती है, या दंगे का कारण बनती है. तब ये सजा एक माह के बदले छह महीने के कारावास या 1000 रुपये जुर्माना हो सकती है. या दोनों चीजें एक साथ हो सकती हैं।

भारतीय दंड संहिता, 1860  की धारा 269 ?

IPC की धारा 269 का उद्देश्य, लोगों के लिए खतरा बन सकने वाले किसी रोग के संक्रमण को फैलने की सम्भावना कम करना है. इसमे कहा गया है कि कोई व्यक्ति जो कानून के खिलाफ जाकर या नियमों की अवहेलना कर ऐसा कोई काम करेगा जिससे कि किसी संक्रमण या बीमारी से जनता के जीवन के लिए संकट खड़ा हो सकता है या किसी रोग का संक्रमण का फैलने की संभावना हो, उसे छह महीने तक की जेल हो सकती है, या जुर्माना देना पड़ सकता है, या दोनों से ही उसे दंडित किया जा सकता है.

इसके उदाहरण के तौर पर अभी हाल में हुए एक घटना को समझा जा सकता है जिसमें बाॅलीवुड की मशहूर सिंगर कनिका कपूर जो कि कोरोना से संक्रमित थी बावजूद उसके वह कई पार्टीयों में शामिल हुई जिससे अन्य लोगो में भी कोरोना संक्रमण का खतरा बड़ गया। जिस कारण कई जगह उसके खिलाफ मुकदमा किया गया। ऐसे कई मामले पूर्व मे भी हुए है एक ऐसे ही मामला प्लेग फैलन के समय में भी हुआ था। जिसमे एक प्लेग रोगी जिसे कि कहीं न जाने की सख्त हिदायत दी गयी थी. लेकिन इस हिदायत के बावजूद, अभियुक्त ट्रेन से एक दूसरे शहर चला गया. उसे  दोषी माना गया था क्योंकि कानून के पास यह विश्वास करने का पर्याप्त कारण था कि उसके इस काम से दूसरों के लिए खतरा पैदा हुआ, और उसके इस एक्शन से एक ऐसा संक्रामक रोग फैलेगा जो जीवन के लिए खतरा बन सकता है.   


भारतीय दंड संहिता,  की धारा 270 में लॉकडाउन तोड़ने पर गंभीर सजा 

IPC की धारा 269 के समान ही धारा 270 भी संक्रमण के फैलने से रोकने से संबंधित है। लेकिन, धारा 270 इस मामले मे धारा 269 से और ज्यादा व्यापक और गंभीर है। जिसमे एक शब्द है Malignantly जिसका हिन्दी अर्थ है परिद्वेषपूर्ण। इसका मतलब कि जो अपराध जानबूझकर, बुरी भावना से संक्रामक रोग को फैलाने के लिए की गयी हो।
IPC धारा 270 मे कहा गया है कि अगर किसी द्वेषपूर्ण कार्य से जिससे किसी के जीवन के लिए संकट खड़ा हो और रोग के फैलने की संभावना बढ़ जाए और जिसे जानबूझ कर किया गया हो, साथ ही यह मानने का आधार हो कि उसने जानबूझ कर किसी के जीवन के लिए रोग का संक्रमण फैला कर संकट खड़ा किया है, उसे दोषी माना जाएगा। जिसके तहत उसे सश्रम या सामान्य कारावार में से किसी की भी सजा हो सकती है और दोषी पाये जाने पर दो साल तक जेल की सजा , जुर्मानी, या दोनों से, दंडित किया जा सकता है। 
अभी हाल ही में कुछ लोगो द्वारा इस प्रकार के बयान दिये जा रहे थे, कि जो कोई भी कोरोना से संक्रमित हो वो जाये और दूसरे लोगो में भी इसका संक्रमण फैलाए। जिसकी की इस प्रकार की मानसिकता है उसे कुछ बोलने या लिखने से पहले धारा 270 को पढ़ और समझ लेना चाहिए। 

भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 271 ?

यह एक ऐसा प्रावधान है, जो जब लॉकडाउन ऑपरेशन में हो, तब लागू हो सकता है। इस प्रावधान के तहत, छह महीने तक का कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। आईपीसी की धारा 271, Quarantine के नियम की अवज्ञा से सम्बंधित प्रावधान है। इस धारा के अंतर्गत जो कोई व्यक्ति करन्तीन नियमों की अवज्ञा करेगा उसे इस धारा के अंतर्गत दण्डित किया जा सकता है। Quarantine नियम का अर्थ यह होगा जहाँ किसी क्षेत्र को किसी अन्य क्षेत्र से अलग करके रखा गया हो, जिससे कोई इन्फेक्शस रोग का फैलाव न हो। आमतौर पर Quarantine का तात्पर्य, एक अवधि, या अलगाव के एक स्थान से है, जिसमें लोग या जानवर, जो कहीं और से आए हैं, या संक्रामक रोग के संपर्क में आए हैं, उन्हें रखा जाता है। भारतीय दंड संहिता, की धारा 271 के अंतर्गत यह कहा गया है कि, यदि कोई व्यक्ति जो किसी विशेष स्थान, जहाँ कोई इन्फेक्शस रोग फैला है, उसे अन्य सभी स्थानों से अलग किया जाता है से अन्य स्थान, जहाँ वह रोग नही फैला है, में जानबूझकर  जाता है तो उसे धारा 271 नियम की अवज्ञा समझा जा सकता है, जिसके तहत, उस व्यक्ति को दोषी ठहराया जा सकता है और इस प्रावधान के तहत, छह महीने तक का कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जा सकता ह
कोरोना संक्रमण के कई ऐसे मामले भी आये हैं, जहाँ लोगों को अपने अपने घरों में ही रहने की सलाह दी गयी है क्योंकि वो किसी कोरोना पॉजिटिव के संपर्क में न आये हैं जिससे उनमे इसका संक्रमण न हो सके। इसलिए, ऐसे लोगों द्वारा, औरों को कोरोना से संक्रमित न किया जा सके इसलिए उन्हें स्वयं को करन्तीन रखने का आदेश दिया जा रहा है। परंतु, इन सभी मामलों में ऐसे आदेश की अवज्ञा के मामले भी सामने आ रहे हैं, इन्ही मामलों में धारा 271 लागू की जा सकती है। 



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